एकता में ही समाज की असली ताकत
छिंदवाड़ा के मेहरा समाज को अपनी आपसी एकता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता
जिस समाज का कोई दल नहीं होता, उस समाज में कोई बल नहीं होता" – यह पंक्ति सिर्फ एक कथन नहीं, बल्कि एक गहरी सच्चाई है। यह हर समुदाय के अस्तित्व, पहचान और विकास की नींव को स्पष्ट करती है। इतिहास से लेकर वर्तमान तक, यह बार-बार सिद्ध हुआ है कि जब लोग एकजुट रहते हैं, तो वे सबसे कठिन परिस्थितियों का सामना मजबूती से कर पाते हैं, जबकि बिखरा हुआ समाज अपनी ताकत और पहचान दोनों खो देता है। एकता प्रकृति से इतिहास तक का सबक- हम प्रकृति में भी एकता की शक्ति के अनगिनत उदाहरण देखते हैं। जंगल में शेर, हाथी, भेड़िये, हिरण—सभी अपने समूह या झुंड के सहारे ही सुरक्षा और अस्तित्व बनाए रखते हैं। अकेला प्राणी चाहे कितना भी ताकतवर हो, संगठित समूह के सामने कमजोर पड़ जाता है। मनुष्य, जिसे सबसे बुद्धिमान प्राणी माना जाता है, ने विज्ञान, तकनीक और सभ्यता में अद्भुत प्रगति की है। लेकिन जब भी कोई बड़ी चुनौती सामने आई, बुद्धि के साथ-साथ एकता ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बनी। भारत का स्वतंत्रता संग्राम इसका सबसे बड़ा प्रमाण है—जब विभिन्न क्षेत्रों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोग एक हुए, तो अंग्रेज़ी साम्राज्य जैसी अजेय ताकत भी हार गई।
मेहरा समाज का गौरवशाली अतीत और योगदान में छिंदवाड़ा जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ मेहरा समाज की मेहनत, ईमानदारी और सेवा भावना के लिए भी प्रसिद्ध है। इतिहास गवाह है कि मेहरा समाज के लोग कृषि, पशुपालन और कारीगरी में निपुण रहे हैं। गाँवों में खेतों की सिंचाई से लेकर त्योहारों के आयोजन तक, उनकी भागीदारी हमेशा अग्रणी रही है। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि पुराने समय में जब गाँव में कोई संकट आता—चाहे सूखा हो, आगजनी हो या बीमारी का प्रकोप—मेहरा समाज के लोग सबसे पहले आगे बढ़कर मदद करते थे। वे न केवल अपने समाज के, बल्कि पूरे गाँव के लिए सामूहिक श्रमदान और आर्थिक सहयोग करते थे। छिंदवाड़ा के परासिया, अमरवाड़ा, चौरई, जुन्नारदेव, बिछुआ, सौसर, मोहखेड़, छिंदवाड़ा, उमरेठ और पांढुर्णा क्षेत्रों में मेहरा समाज की उल्लेखनीय उपस्थिति है। हाल के वर्षों में सामूहिक रक्तदान शिविर, गरीब बच्चों को किताबें उपलब्ध कराना, स्वच्छता अभियान, सामूहिक विवाह सम्मेलन, आपसी मिलन समारोह और पारंपरिक ‘तिसाला’ जैसे आयोजन समाज की एकजुटता के प्रतीक हैं। किसी भी समाज के लिए ‘दल’ का अर्थ केवल राजनीतिक संगठन नहीं है, बल्कि ऐसा मंच है जो समाज के हितों की रक्षा और विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य करता है। दुर्भाग्य से, मेहरा समाज अपनी बड़ी संख्या के बावजूद आंतरिक बिखराव के कारण अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुँच पा रहा है संविधान की जाति अनुसूची में मेहरा जाति 36वें क्रमांक पर दर्ज है, यानी कानूनी तौर पर सभी मेहरा एक ही श्रेणी में आते हैं। लेकिन वास्तविकता में, हम गोत्र और उपगोत्रों में विभाजित हैं—जैसे नुन्हारिया, डेहरिया, कतिया, बोनिया, पठारिया, गढ़वाल, झारिया और अन्य। इन गोत्रों के भीतर भी उपविभाजन हैं, जो हमें एक-दूसरे से अलग कर देते हैं रीति-रिवाज और परंपराएँ हर किसी की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं, और उन्हें मानने की आज़ादी होनी चाहिए। लेकिन इन भिन्नताओं को एक मंच पर समन्वित करके ही हम सामूहिक शक्ति में बदल सकते हैं।
सामाजिक आपसी एकता के लाभ की बात करें तो मेहरा समाज जिला में प्रगतिमूलक कार्य के सकते है जिसमे शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति पर विशेष कार्य किया जा सकता है – शिक्षा को प्राथमिकता देकर, छात्रवृत्ति, कोचिंग और मार्गदर्शन जैसी सुविधाएँ बढ़ाकर सामाजिक शिक्षा का पथ प्रदर्शक बन सकते है। रोज़गार और व्यवसाय में युवाओं को नौकरी और व्यापार के अवसर उपलब्ध कराना और उनके कौशल का विकास करने को लेकर कार्य किया जा सकता है। संस्कृति संरक्षण – मेहरा समाज की परंपराओं, त्योहारों और रिवाजों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाना। संकट में सहयोग– बीमारी, दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा के समय आर्थिक और मानसिक सहायता देना। सामाजिक सम्मान – संगठित समाज की प्रशासन, राजनीति और अन्य समुदायों में मजबूत पहचान बनती है। एकता की राह में आने वाली बाधाएँ - एकजुट रहना आसान नहीं होता। व्यक्तिगत मतभेद, आर्थिक असमानता, ईर्ष्या, और आपसी अविश्वास अक्सर समाज को बाँट देते हैं। इन चुनौतियों को दूर करने के लिए—खुला संवाद अपनाना होगा ताकि गलतफहमियाँ दूर हों। समान अवसर देने की सोच रखनी होगी। सामूहिक निर्णय की परंपरा अपनानी होगी ताकि हर सदस्य को लगे कि वह समाज का हिस्सा है।
छिन्दवाड़ा का मेहरा समाज अपनी एकता को मजबूत करने के लिए निम्न ठोस कदम उठा सकता है—सामाजिक रजिस्टर – जिले में सभी मेहरा परिवारों का डेटा संकलन। वार्षिक महासम्मेलन – साल में एक बार पूरे जिले के लोगों का सामूहिक आयोजन। शिक्षा और रोजगार प्रकोष्ठ – युवाओं के लिए स्थायी मार्गदर्शन मंच। आपदा सहायता कोष – आपातकाल में तुरंत मदद के लिए फंड। सांस्कृतिक कार्यक्रम – परंपराओं और त्योहारों का सामूहिक आयोजन। समाज का भविष्य एकता में है- अगर आने वाले 5-10 वर्षों में छिंदवाड़ा का मेहरा समाज अपनी एकता को मजबूत कर लेता है, तो यह आर्थिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति करेगा और जिले व प्रदेश में अपनी अलग पहचान बनाएगा। एकता कोई नारा नहीं, बल्कि जीने का तरीका है। जैसे एक अकेली लकड़ी आसानी से टूट जाती है, लेकिन लकड़ियों का बंडल नहीं—वैसे ही एकजुट समाज को कोई शक्ति कमजोर नहीं कर सकती। आज समय है कि हम व्यक्तिगत मतभेदों से ऊपर उठकर एक हों, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी आत्मनिर्भर, जागरूक और गर्वित बन सके।
श्याम कुमार कोलारे
समाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा म.प्र.
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