जाने आठ पहर के बारे में

जाने आठ पहर के बारे में


आठ प्रहर का अर्थ है 24 घंटे के दिन-रात को आठ भागों (प्रहरों) में विभाजित करना। हर प्रहर का समय, उसका महत्व और उसमें किए जाने वाले कार्यों का वर्णन किया गया है। आइए इसे क्रमवार विस्तार से समझते हैं:
🌅 दिन का प्रथम प्रहर - पूर्वाह्न (सुबह 6 बजे से 9 बजे तक)
यह सूर्योदय के बाद का समय है।
इसे “पूर्वाह्न” कहा जाता है।
इस समय पूजा-पाठ, शिक्षा, और अच्छे संकल्प लेने के लिए उत्तम माना गया है।
स्वास्थ्य के लिए व्यायाम, योग और प्राणायाम करने का समय भी यही है।
इस प्रहर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार अधिक होता है।
☀️ दिन का दूसरा प्रहर - मध्याह्न (सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक)
यह समय काम-काज और व्यावसायिक गतिविधियों के लिए श्रेष्ठ है।
इस समय मनुष्य की मानसिक और शारीरिक सक्रियता सबसे अधिक होती है।
सरकारी और निजी कार्यालयों का कार्य प्रारंभ होता है।
व्यावसायिक, सामाजिक और शैक्षिक कार्य करने के लिए यह प्रहर उत्तम है।
🍽️ दिन का तीसरा प्रहर - अपराह्न (दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक)
यह भोजन और विश्राम का समय माना गया है।
मानसिक थकान के कारण इस समय शारीरिक और मानसिक कार्यक्षमता थोड़ी कम हो जाती है।
इस समय अनावश्यक कामों से बचना चाहिए।
अधिक मेहनत वाले कार्य इस समय नहीं करने चाहिए।
🌇 दिन का चौथा प्रहर - सायंकाल (दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक)
यह दिन का अंतिम प्रहर है।
इस समय सूर्य अस्त होने लगता है।
पूजा-पाठ, दीप जलाना और शाम की आरती करने का समय यही है।
मन को शांत करने और दिनभर की थकान को दूर करने के लिए यह उत्तम समय है।
🌆 रात का प्रथम प्रहर - प्रदोष काल (शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक)
यह रात्रि का प्रारंभिक समय है।
इस समय मानसिक और शारीरिक रूप से आराम करना चाहिए।
दिन के कार्यों का समापन कर परिवार के साथ समय बिताना और भोजन करना श्रेष्ठ है।
पूजा और दीप जलाने के लिए भी यह अच्छा समय है।
🌙 रात का दूसरा प्रहर - निशीथ काल (रात 9 बजे से 12 बजे तक)
यह रात्रि का मध्य समय है।
इस समय शांति और विश्राम का महत्व है।
राजसी और तामसिक प्रवृत्तियों का प्रभाव अधिक रहता है।
इस समय अधिक जागरण से बचना चाहिए और अच्छी नींद लेना उत्तम है।
🌌 रात का तीसरा प्रहर - त्रियामा प्रहर (रात 12 बजे से 3 बजे तक)
इसे “मध्य रात्रि” भी कहा जाता है।
योग और साधना करने वाले लोग इस समय का उपयोग करते हैं।
ध्यान और प्राणायाम के लिए यह उपयुक्त समय है।
शारीरिक और मानसिक विश्राम का समय भी यही है।
🌅 रात का चौथा प्रहर - उषा काल (रात 3 बजे से सुबह 6 बजे तक)
इसे ब्रह्ममुहूर्त कहा जाता है।
यह समय ध्यान, साधना, जप और पूजा-पाठ के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
इस समय का वातावरण बहुत ही शुद्ध और ऊर्जावान होता है।
स्वास्थ्य के लिए व्यायाम और योग करना भी उत्तम है।
📜 निष्कर्ष:
दिन और रात के आठ प्रहरों को समझकर उनके अनुसार दिनचर्या बनाने से जीवन में संतुलन, स्वास्थ्य और सकारात्मकता आती है। प्रत्येक प्रहर का महत्व अलग है और उसकी ऊर्जा का सदुपयोग करने से शरीर, मन और आत्मा पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

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