भारत में नारी का सम्मान और उनकी अग्रणी भूमिका
भारत
मे नारी सदैव से अग्रणी रही है, हमारी
परंपरा,
संस्कृति और चिंतन में नारी सदैव ही सम्मानीय रही है। भारत
में नारी का स्थान प्राचीन काल से ही अत्यंत सम्माननीय रहा है। हमारी संस्कृति में
नारी को शक्ति, ज्ञान और समृद्धि का
प्रतीक माना गया है। वेदों और पुराणों में नारी को माँ, देवी,
सहधर्मिणी और समाज की आधारशिला के रूप में प्रस्तुत किया गया है। भारतीय
संस्कृति में नारी को देवी स्वरूप माना गया है—सरस्वती ज्ञान की, लक्ष्मी समृद्धि की और दुर्गा शक्ति की प्रतीक हैं। रामायण और महाभारत में
सीता, द्रौपदी जैसी नारियाँ न केवल अपने कर्तव्य के प्रति
निष्ठावान रहीं, बल्कि उन्होंने समाज को नई दिशा भी दी। हालाँकि,
मध्यकाल में कुछ सामाजिक कुरीतियों ने नारी की स्थिति को प्रभावित
किया, लेकिन आधुनिक भारत में नारी फिर से अपने अधिकारों और
स्वतंत्रता के प्रति जागरूक हो रही है। आज वे शिक्षा, विज्ञान,
राजनीति, खेल और व्यवसाय के हर क्षेत्र में
अग्रणी हैं। नारी सशक्तिकरण के साथ समाज का विकास जुड़ा है। जब नारी सशक्त होगी,
तभी राष्ट्र भी सशक्त होगा। भारत की नारी सदैव से सम्माननीय रही है
और आगे भी समाज को दिशा देती रहेगी।
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता”यह प्राचीन संस्कृत सूक्ति केवल शब्द नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपराओं में महिलाओं के प्रति गहरी श्रद्धा का प्रतीक है। इस सूक्ति के अनुसार, जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते हैं।
हमारे
दैनिक जीवन में महिलाओं की एक विशेष भूमिका रही है। महिलाएं समाज में एक अभिन्न
भूमिका निभाती हैं। वे परिवारों की रीढ़ हैं और समुदायों के विकास और वृद्धि के
लिए महत्वपूर्ण हैं। महिलाओं, बहन,
बेटियों को जीतने अधिक अवसर एवं, सुविधाएँ मिलेगी, वह समाज को कई गुना लौटाकर देंगी। किसी संस्कृति को अगर समझना है तो सबसे आसान
तरीका है कि उस संस्कृति में नारी के हालात को समझने की कोशिश की जाए। किसी भी देश
के विकास संबंधी सूचकांक को निर्धारित करने हेतु उद्योग, व्यापार,
खाद्यान्न उपलब्धता, शिक्षा इत्यादि के स्तर के
साथ ही इस देश की महिलाओं की स्थिति का भी अध्ययन किया जाता है। नारी की सुदृढ़ एवं
सम्मानजनक स्थिति एक उन्नत, समृद्ध तथा मज़बूत समाज की द्योतक
है।
भारतीय
महिलाएं ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता,
जीवन्त उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने
में सक्षम है। भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों
में, “हमारे लिए महिलाएं न केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रौशनी की लौ भी हैं”। अनादि काल से ही महिलाएं मानवता की प्रेरणा
का स्रोत रही हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर भारत की पहली महिला शिक्षिका
सावित्रीबाई फुले तक, महिलाओं ने बड़े पैमाने पर समाज में
बदलाव के बडे़ उदाहरण स्थापित किए है। हालाँकि सावित्रीबाई फुले युद्धभूमि की
वीरांगना नहीं थीं, लेकिन उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में
क्रांति लाकर समाज को जागरूक किया। उन्होंने महिलाओं और दलितों की शिक्षा के लिए
अपना जीवन समर्पित कर दिया। भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो
महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा ज़रूर होती है। रानी लक्ष्मीबाई न सिर्फ़
एक महान नाम है बल्कि वह एक आदर्श हैं उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर
मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं ये सोचती है कि ‘वह महिलाएं हैं
तो कुछ नहीं कर सकती.’ देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857)
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली
रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और
वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं। समाज सेवी मदर टेरेसा ने
सेवा और करुणा की मिसाल पेश की। उन्होंने समाज के गरीब, असहाय और बीमार लोगों की सेवा के लिए अपना संपूर्ण जीवन
समर्पित कर दिया। गोंडवाना की
शासक रानी दुर्गावती ने मुगल सेना के विरुद्ध वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा। उन्होंने
अपने राज्य की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष किया और युद्धभूमि में
आत्मबलिदान कर दिया। भारत की वीरांगनाएँ केवल अतीत की गाथाएँ नहीं हैं, बल्कि वे आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। वे हमें
सिखाती हैं कि नारी शक्ति, साहस, त्याग और आत्मसम्मान का प्रतीक है। चाहे वह युद्ध का मैदान
हो या समाज सेवा, भारतीय नारियाँ सदैव अग्रणी रही
हैं और आगे भी रहेंगी।
दुनिया के हर देश में बच्चे और बुज़ुर्गों की देखभाल करने में
मुख्य योगदान महिलाओं का सर्वाधिक होता हैं। अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों से पता चलता
है कि जब समाज की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था बदलती है, तो महिलाएँ परिवार को नई
वास्तविकताओं और चुनौतियों के अनुकूल बनाने में अग्रणी भूमिका निभाती हैं।
"जब महिलाएं सशक्त होती हैं और अपने अधिकारों और भूमि, नेतृत्व, अवसरों और विकल्पों तक पहुंच का दावा कर सकती हैं, तो अर्थव्यवस्थाएं बढ़ती हैं, खाद्य सुरक्षा बढ़ती है और वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभावनाएं बेहतर होती हैं।"
भारत के संबंध में कई बार वर्ल्ड बैंक ग्रुप आदि ने कहा है कि अगर यहाँ पर महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में वृद्धि की जाए तो भारत की विकास दर में तीव्र वृद्धि हो सकती है। गौरतलब है कि 1994 से 2012 के मध्य कई लाख भारतीय गरीबी रेखा से बाहर निकल चुके हैं। इन आँकड़ों में और बढ़ोतरी होती अगर कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में और इज़ाफा होता। 2012 में सिर्फ 27% वयस्क भारतीय महिलाएँ विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत थीं। चिंता की बात यह है कि भारत के तीव्र शहरीकरण ने कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में कोई वृद्धि नहीं की है। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, 2022 के वैश्विक औसत 47.8%
के मुकाबले भारत में महिला श्रम
शक्ति भागीदारी दर 37% है। हालाँकि यह वर्ष 2017-18 में 23.3%
से बढ़ा है, लेकिन इसका 37.5%
हिस्सा “घरेलू उद्यमों में अवैतनिक
सहायक” के रूप में नियोजित है। इन महिलाओं को उनके द्वारा किए जाने वाले काम के
लिए कोई भुगतान नहीं किया जाता है।
भारत
ने व्यापक नीतियों, लक्षित
योजनाओं और कानूनी ढांचों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण में उल्लेखनीय प्रगति की
है। आर्थिक भागीदारी से लेकर सुरक्षा, डिजिटल समावेशन से लेकर शिक्षा तक, सरकार की पहलों ने महिलाओं के जीवन में महत्वपूर्ण सुधार
किए हैं। इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक समावेशी, लैंगिक-समान समाज के निर्माण की प्रतिबद्धता की पुष्टि करना
बहुत जरूरी है जहां महिलाएं राष्ट्र के भविष्य को आकार देने में मुख्य भूमिका
निभाती हैं। नीति-निर्माण, सामुदायिक
जुड़ाव और डिजिटल समावेशन में निरंतर प्रयास यह सुनिश्चित करेंगे कि महिलाएं आने
वाले वर्षों में भारत की विकास गाथा को आगे बढ़ाती रहें।
किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है, वहाँ की महिलाओं की स्थिति। हमें महिलाओं को ऐसी स्थिति में पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए, जहाँ वे अपनी समस्याओं को अपने ढंग
से ख़ुद सुलझा सकें। हमारी भूमिका महिलाओं की ज़िंदगी
में उनका उद्धार करने वाले की न होकर उनका साथी बनने और सहयोगी की होनी चाहिए। क्योंकि भारत की महिला इतनी सक्षम है कि वे अपनी समस्याओं को ख़ुद सुलझा सकें। कमी अगर कहीं है तो बस इस बात की, हम एक समाज के तौर पर उनकी
क़ाबलियत पर भरोसा करना सीखें। ऐसा करके ही हम भारत को उन्नति के
रास्ते पर ले जा पाएंगे।
लेखक : श्याम कुमार कोलारे, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र लेखक, छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश
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