जिन्दगी का तजुर्बा कच्चा की रह गया।
जब पक्की उम्र में अपनो को खो गया।
सोचता, उम्र के साथ गाढ़ी होगी जिंदगी
बढ़ती गई उम्र, रिश्तों में पीछे रह गया।
जिन्दगी का तजुर्बा कच्चा ही रह गया।
जो पहले अदब से सिर झुकाते थे
हर काम को हाथों हाथ कर जाते थे
बढ़ती उम्र ने छीन लिया करीबियों को
अब मैं अनसुना हो गया, अपनो से
जिन्दगी का तजुर्बा कच्चा ही रह गया।
बड़ा सा घर बनाया मैने वह एज मकान रह गया
रिश्तों का आशियाना, पत्थर का समान रह गया
सजाया था जिसको अपने मेहनत परिश्रम से
आज वो सपना घर का पुराना कोना रह गया
जिन्दगी का तजुर्बा कच्चा ही रह गया।
जिनसे की थी ताउम्र बेपनाह मोहब्बत
मेरे नाम से कइयों ने पाई थी शोहरत
मैं उस कच्चे रिश्तों में चलता ही रह गया
जिन्दगी का तजुर्बा कच्चा ही रह गया।
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश
9893573770
0 टिप्पणियाँ
Thanks for reading blog and give comment.