खामोश बस्तियां
मत जोड़ो मुझे, किसी की हस्ती से
हमे यूँ ही, मस्त मौला ही रहने दो
जिया हूँ, सुकून भरी जिंदगी में यहाँ
इन निर्मल हवाओं में, मुझे भी उड़ने दो
मुझे इन खामोश बस्तियों, में ही रहने दो।
भले ही रास्ते सुनसान है, पगडंडियों के
लेकिन इन बस्तियों में, अभी भी चहल है
यहाँ झोपड़ी भी, किसी महल से कम नही
इस महल में मुझे, सुकून से रहने दो
मुझे इन खामोश बस्तियों, में ही रहने दो।
अकेला नही मैं यहाँ, सब अपने है
अनजान नही मैं, मुझे सब जानते है
नही चाहिए मुझे, कोई शोर सराबा
इस निर्मल सरिता का, जल पीने दो
मुझे इन खामोश बस्तियों, में ही रहने दो।
इन गाँव में मेरे कुछ, सच्चे दोस्त बस्ते है
हमारा साथ देने को, हमेशा मर मिटते है
डलियों में झूलते, अक्सर हम दिखते थे
बरगद की डालियों को, यूँ ही झुकने दो
मुझे इन खामोश बस्तियों, में ही रहने दो।
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रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश
9893573770
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