हे कान्हां! तुम्हें फिर से आना होगा, Krishna

हे कान्हां! तुम्हें फिर से आना होगा, Krishna

हे कान्हां! तुम्हें फिर से आना होगा

हे गिरधारी गोविन्द, 
तुम्हें धरती पर फिर आना होगा
दुशासन से घिरी द्रोपती का, 
छीर फिर बचाना होगा।
छल कपट की चादर ओढ़े, 
शराफत के सब बादशाह
नजरों में खंजर लेकर, 
मासूमों को खुलेआम घूर रहा।

इंसान में नही रही इंसानियत, 
इंसांन को ही नोच रहा
बेटी बच्ची अबोध नाजुक सी, 
कली को भी तोड़ रहा।
हे प्रभु गोकुल के वासी, 
तुम हो एक निज परम् प्रतापी
कुछ ऐसा कर जाओ प्रभु, 
सदा छीर बढ़ती ही जाये।

हे श्रष्टि के पालनहार! कुछ कर, 
नाम से तेरे पापी डरें
मासूमों पर कुनजर डालने वाले, 
इस दुनियाँ में कांप उठें ।
जुल्म की तख्तियाँ लेकर नारी, 
मिल जाएगी यहाँ राहों में
काँटों ने किया उन्हें जख्मी है, 
संघर्ष की भरी टेढ़ी राहों में।

आज भी सच्चे दरबारों में, 
जिनके सामने चलती आरी है।
सब मौन बैठे है मुह सीकर, 
पता नहीं कौन सी लाचारी है।
जो ज्ञानी ध्यानी महान है, 
सब अपने स्वार्थ में लीन है हुए
औरों की कौंन सुध ले, 
सब अपने-आपमे मीर है हुए। 

हे मधुसूदन ब्रजवासी, 
तुमको फिर धरती पर आना होगा
धरती में भरी दुशासन सेना को,
तुन्हें खुद ही हटाना होगा। 
मत देर करो हे कान्हां! 
अब अपना सुदर्शन लाना होगा
इंसान को इंसानियत का पाठ, 
फिरसे तुन्हें पढ़ाना होगा। 

रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश 
9893573770

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