डगमगाते नन्हे कदमों को, प्यार से तुमने थमा था
कोरे मस्तिष्क में तुमने ही, ज्ञान का चित्र उकारा था।
चलना तो सीखा माँ से, कहाँ चलना आपने सिखाया
पिता ने उँगली थमा, गिरकर उठना आपने सिखया।
मैं साधारण पत्थर जैसा, तरासकर आपने मूर्त बनाया
सच्चा पथ की राह दिखाकर, पथगामी मुझे बनाया।
पीछे था मैं हर पथ पर, ज्ञान रोशनी से मुझे चमकाया
वीरान वाटिका के फूलों को, फिर आपने ही महकाया।
ज्ञान विज्ञान अनुसंधान से, चहुओर मेरा मान बढ़ाया
नाना गुण से पूर्ण बनाके, जमी से आसमान दिखाया।
मुझ साधारण सी सख्शियत को, ज्ञान दीप से दमकाया
कमजोर कड़ी मजबूर कर, मेरा जीना सफल बनाया।
शिक्षक है भाग्य विधाता, शिक्षक हमारे भविष्य निर्माता
बचपन से जीवन भर तक, शिक्षक से है गाड़ा नाता ।
हे शिक्षक ऋणी रहूँगा आजीवन, उपकार बड़ा है तेरा
आशीर्वाद बना रहेगा गर, जीवन उज्जवल हो जाये मेरा।
रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिंदवाड़ा(म.प्र.)
मो. 9893573770
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