हे जिन्दगी! बहुत दौर देखे है मैंने
कभी बहुत दौड़ा हूँ तेरे पीछे मैंने
पता है! तुझे पाने में मैंने जीवन के
बहुत से हसीन पल बिताए है।
तेरे लिए बहुत सी खुशियाँ छोड़ी
तेरे लिए बहुत से गम बिताए है
साधने तुझको बहुत जुगत लगायें
कभी हारा तुझसे कभी जीत मनाये।
अपने अधरों पर मुस्कान लिए फिरता हूँ
कभी थोड़ा जीता हूँ, कभी फिसलता हूँ
दुःख में भी हँसना मजबूरी है, जीना है
जीवन का रस लेकर और थोड़ा जीता हूँ।
बिताए है हमने सूखे दौर, बरसातों में भी
हमने गर्मी में सिर पर ओले भी खाए है
ये जिन्दगी बस एक अँगड़ाई ले ले
जीवन में एक मुकम्मल मंजिल पा लेने दें।
©®श्याम कोलारे
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