मुझे इंसान ही रहने दो
प्रकृति के कण-कण में समाया है उमंग
उफनती नदियाँ को उल्लास में बहने दो।
आकाश ऊँचाई से निहारे, धरा को प्यार से
इस चकवा को चकोर के, प्यार में रहने दो।
उफनती नदियाँ को उल्लास में बहने दो।
आकाश ऊँचाई से निहारे, धरा को प्यार से
इस चकवा को चकोर के, प्यार में रहने दो।
फूलों से भरी वाटिका इठलाती है खुशबू से
सतरंगी तितलियों को इस मस्ती में रहने दो।
नजर उठाकर देखो तो, इस धरा की हरियाली
इन हरे-भरे पेड़ो को, अपनी मस्ती में जीने दो।
अपने को आजमाना है तो, गिन लेना तारे
टिमटिमाते तारे को खींच लो, हाथ मे आने दो।
सुनकर देखो संगीत जीवन का, मधुर सुनाई देगा
जीवन की उमंग को बस इस धुन में रहने दो।
लुटा दो जीवन सारा कुछ अपनी धुन में
इस जीवन को कुछ अपने लिए भी रहने दो।
करता हूँ मदद अनायास ही सभी की
मैं फरिस्ता नही, मुझे इंसान ही रहने दो।
रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, म.प्र.
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