रक्षाबंधन

रक्षाबंधन


रक्षाबंधन

पूरे एक साल के बाद रक्षाबंधन में गाँव जा रहा हूँ, चार बहनों का भाई हूँ। राखी बाँधने हर साल सभी बहने आती है अपने मायके। इस साल भी जरूर सभी आएगी। मन मे विचार करते-करते रात काटने के लिए अपने बिस्तर पर बड़बड़ाये लेटे हुए था। लेटा तो सोने के लिए परंतु नींद जैसे कोशो दूर जा चुकी थी। वेतन माह की 7 तारीख को आती है परन्तु आज तो 28 तारीख है। इस महीने घर गृहस्थी के सामान, बच्चों की स्कूल फीस, और अनेक महीने की दैनिक खर्च करते हुए पता ही नही चला कि सारे पैसे खर्च हो गये है। सोचा यह आफिस कार्यों के लिए अपने जेब के खर्च हुए पैसों का बिल भुगतान आ जायेगा तो रक्षाबंधन के खर्चों की व्यवस्था हो जायेगी। लेकिन बिल का भुगतान आना जैसे सूखे में बरसात का आना जैसा था, जो नही आया, सपनो का सावन सूखा चला गया। 

मन मे अनेक विचाओं ने घर कर रखा था सोच के सागर में डुबकी लगाता हुआ मन ही मन सोच रहा था कि एक सप्ताह से भी अधिक दिन है, वेतन मिलने को। रक्षाबंधन में घर जा रहा हूँ यानी कुछ न कुछ तो लेकर जाना ही पड़ेगा। कुछ नही तो बहनों के लिए सस्ती ही सही साड़ी तो लेकर जाना ही पड़ेगा। नही तो बहने क्या सोचेगी! भाई शहर में रहता है, नौकरी करता है, अच्छा कमाता भी है और हमारे लिए कुछ नही! खाली हाथ भी नही जा सकता। 

मन को जैसे विचारों के बादलों ने पूरी तरह घेर लिया था; आखिर इतने सालों में पहली बार ऐसा हुआ है कि मेरे पास पैसे नही है। कुछ न कुछ तो करना ही होगा। सोचा कल अपने सहकर्मियों से कुछ पैसे उधार ले लूँगा। परंतु एक आत्मसम्मान कि लोग क्या कहेंगे कि इसके पास रक्षाबंधन में घर जाने के लिए पैसे नहीं है, मेरे बारे में क्या सोचोंगे। नही मैं अपने दोस्तों से पैसे के लिए नही कहूँगा! परंतु कैसे भी पैसे की व्यवस्था तो करना ही पड़ेगा। चलो इस बार अपने अहम को साइड में रखकर एक बार मांग कर देखूँगा, शायद मेरे साथी कुछ पैसे से मेरी मदद करें। कल बात करूँगा, सोचते-सोचते नींद कब लग गई पता ही नही चला। 

सुबह 7 बजे पुष्प ने बड़बड़ाते हुए जगाई, 7 बज गये है, जब पता है कि भाग्या को रोज स्कूल छोड़ने जाना पड़ता है तो रोज सही समय पर उठते क्यो नही, मुझे जगाना पड़ता है। 

बेचारी पुष्प भी सुबह से लेकर शाम तक मशोनो कि तरह घर के काम ने जुटी होती है। यदि सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ कर आना भी उसी के जिम्मे था। यदि मैं घर पर हूँ और इस काम मे मदद कर दूँ तो उसके लिए बड़ी राहत से कम नही, इसलिए बेचारी एक छोटी सी अपेक्षा कर भी रही है तो उसका क्या दोष! ये तो उसका हक है। 

उठ कर मुँह पर पानी मारा और उबकाई लेते हुए, स्कूल के लिए तैयार बैठी भाग्या को बाइक से स्कूल छोड़ आया। घर आने पर कॉफ़ी तैयार थी, कॉफ़ी की गर्म चुस्की के साथ पुष्प के सवालों का सिलसिला शुरू हुआ जिसका मुझे पहले से अनुमान था। 30 को रक्षाबंधन है, गांव जाते समय ट्रैन पहले मेरे मायके में रुकती है, हम सुबह वही रुक जाएँगे। दोपहर तक मेरे भाई को राखी बांधकर फिर गाँव चलेंगे। मैने आज्ञाकारी पति की भाँति हाँ में उसका प्रतिउत्तर दिया। पुष्प ने उसके भैया के लिए क्या खरीदना है, उसके बारे में मुझसे कुछ नही बोली, उसको पता है कि मायके में ही किसी अच्छी कपड़ों की दुकान से कुछ खरीद लेंगे। लेकिन पुष्प ने मेरी बहिन के लिए क्या खरीदना है के बारे में पूछा तो मैंने बगैर सोचे उत्तर दे दिया! खरीदना क्या है, रक्षाबंधन कोई गिफ्ट तौफा देने के लिए होता है क्या? यह त्यौहार तो भाई-बहिन के निर्मल प्यार एवं आपसी विश्वास का होता है। भाई आके प्रति बहिन का, एवं बहिंन के भाई के प्रति प्यार एवं अहसास का होता है। मैं उनको हर साल रक्षाबंधन में कुछ न कुछ तौफा लेकर जाता हूँ, इस बार कुछ नही देते , देखते है बहिन का प्यार और भाई का अहसास वे क्या सोचती है; उन्हें बताऊंगा इस बार हमारी आर्थिक स्थिति थोडी कमजोर चल रही है। देखते है क्या बोलती है बहिनें व क्या सोचती नही हमारे बारें मे । 

हँसते हुए ! अरे नही मैं तो मजाक कर रहा था, कुछ न कुछ तो व्यवस्था हों ही जाएगी। आज मैं कुछ करता हूँ कहते हुए स्नान में लिए चला गया। 

ऑफिस के लिए तैयार होकर निकलते समय पुष्प ने बोला कि जल्दी आना आज शाम 6 को ट्रेन है काम मे भूल मत जाना। अरे हाँ! मुझे याद रहेगा कहते हुए ऑफिस निकल गया। 

ऑफिस में आज काम में मन नहीं लग रहा था। पैसे की व्यवस्था कैसे हो इसमें मन लगा हुआ था। दोस्तो से बातचीत के दौरान पैसों को जरूरत है के बारे में बोला; सभी ने मेरे बात सुनी, लेकिन कुछ देर बाद लगा कि सभी मे मेरी बात को जैसे मजाक में लिया। ऑफिस में मैंने सभी दोस्तों से स्पष्ट कहा भी था जी रक्षाबंधन के लिए मुझे 1000 रुपयों की जरूरत है, जिसके पास हो वो मुझे ट्रांसफर कर दें। मुझे लगा कि कोई तो मुझे पैसे दे ही देगा। मेरे लेनदेन सभी बहुत अच्छी तरह वाकिफ़ थे, आज तक मेरा किसी का उधार बाकी नही था। बहुत ही जरूरत के समय मैं किसी से माँगता हूँ अन्यथा आभाव में रहकर ही जीवन चक्र को चलाता हूँ। परंतु आज ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर ने भी सभी दोस्तों को मेरी मदद करने के लिए मूरत बना दिया हो। सुबह ग्यारह बजे से सगं साढ़े चार तक मैं देखता रहा कि कोई तो मुझे उधार देगा; परंतु नही! मायूसी जैसे मेरे अंदर आ थी जैसे मेरा क्रेडिट अपने दोस्तों के सामने 1000 रूपयों का भी नही है। 

आज मुझे आपने आप का मूल्य समझ मे आ गया था, कि मेरा अस्तित्व मेरा विश्वास, मेरा मूल्य शायद दूसरी के सामने शून्य है। कई बार सुना था कि जब जेब मे पैसा नही होते है तो करीबी भी साथ थोड़ देते हैं, परंतु आज उसे बड़ी करीबी से अहसास भी किया। और सुने हाथ घर वापिस लौट आया। घर ने तैयार होकर पुष्प और दोनों बच्चे राह देख रहे थे। ट्रैन एक माह पहले भी बुक हो गई थिज़ इसलिए पॉकेट के अंतिम तीन सौ रूपये का नगद के भरोसे गाँव के किये निकल पड़ा ऊपर वाले के भरोसे; आगे जो भी होगा सब उसकी मर्जी । देखते है रक्षाबंधन कैसे मनती है, घर कैसे पहुँचते है और बहिनो के राखि के बदले में इस रक्षाबंधन क्या देते है । 



लेखक
श्याम कुमार कोलारे
स्वतंत्र लेखक, साहित्यकार
छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश, 
मोबाइल- 9893573770


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