मत हो निराश मन I can do it

मत हो निराश मन I can do it

 

अरे आज क्या हुआ, सब तरफ सन्नाटा क्यों है?
     जब आज दुकान खुली ही नही, तो घाटा क्यों है?
         आज कदम क्यो रुक गए, क्या घुटनो में दर्द है
             नवतपा आज तपा नही, क्या मौसम आज सर्द है।

माना कि आज सूरज की,  रोशनी नही साथ है
     मौसम आज बुझा-बुझा है, लगने लगी बरसात है
        क्या ऐसा हुआ कभी कि, सूरज ठंडा हो जायेगा
           जिसकी ज्वाला तेज थी कभी, वो मंद हो जायेगा।

उठो निकालो कदम बढ़ाओ, मंजिल तुम्हे पुकारती
     जीत का तुम सहारा पहनो, स्वागत करती भारती
        बिन भागे तुम दौड़ में, जीत कहा से पाओगे 
           बिन किये परिश्रम तुम, परिणाम से लाओगे।

हार का हार पहनने , स्थिर मत कर पैरो को
    हार को जड़ जोर तमाचा, तेज कर दे पैरों को
       निराशा की काली रात, बीत जाएगी स्वप्न समान
           उजाले की भोर होगी, सूरज होगा फिर आसमान।

रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश
मो. 9893573770

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