"न मैं गलत, न तुम!"
कभी तुम्हे समझने की,
कोशिश करता हूँ ,
कभी अपने आपको,
न तुम गलत हो, न मैं गलत हूँ।
फिर ये सवाल किस बात का है
और ये बबाल किस बात है।
कभी मैं तुम्हे समझाता हूँ
कभी तुम मुझे समझाते हो
ये समझने समझाने में जीवन
के अनमोल पल निकल जाते है।
पता नही ये पल कभी
फिर से लौटकर आएँगे।
यूँ तुम रूठा करो हमसे कभी
हम तुम्हे मनायेंगे
प्यार भरी बातें करके
अधरों पर मुस्कान लाएँगे
बस साथ रहे तुम्हारा तो
चाँद की चकमक ले आएंगे।
प्यार से मैं तुम्हे सताऊंगा
तुम प्यार से मुझे चिड़ाओगे
एक कहा सुनी की ठिठोली में
कुछ समय साथ हम बिताएँगे
हाथ मे हाथ डालकर
प्यार हम जताएंगे
कभी तुम हमे समझाना
कभी हम तुन्हें समझाएंगे।
रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश
मो. 9893573770
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