टायर को ढकेलते, मीलों दौड़कर जाना
नदी के शीतल जल में,कूदकर नहाना
वो इमली की खटास, सबको भाती थी।
दादी की लोरी से ही हमे नींद आती थी
दादा की नसीहत, हमे बहुत भाती थी
उनका प्यार दुलार,सुख की परिभाषा थी
दादी हमे सुलाने, रोज लोरियाँ गाती थी।
पनघट पर माँ-चाची पानी भरने जाती थी
गाँव की खबर, पल भर में मिल जाती थी
गाँव की हवा में, सौंधी खुशबू होती थी।
मिट्टी के घरों में आंनद की ठंडक होती थी।
गाँव की हरियाली में गजब का आनंद था
रिमझिम बारिश में भीगना, बड़ा भाता था
गर्मी की छुट्टी में सब मामा के घर जाते थे
सारी छुट्टियाँ में खूब उड़दंग मचाते थे।
गाँव मे आज भी राम-राम बोला जाता है
घर के सामने स्वागत है लिखा जाता है
यहाँ पीने के लिए पानी नही बिकते है
अनजान से भी मानो बड़े गहरे रिश्ते है।
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रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश
मो. 9893573770
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