कविता- अवसर
ये सजा नही है साथी, ये अवसर है
अपने को तरासने का, सफर है।
यहाँ सीख बट रही है, राहो में
ये मौका , बटोरने का अवसर है।
मुझे पता है मैं अभी नादान हूँ
पर ऐसा नही है कि अनजान हूँ
सीखा है मैंने यहाँ बहुत मगर
सीख को आजमाने का अवसर है।
इरादे बड़े बुलंद हैं हमारे
मंजिल चाहे दूर हो
आसमां निकट है हमारे
चाँद-तारे तोड़ने का अवसर हैं।
एक बार तो कर विश्वास, खुद पर
शक्ति तुझमे आपार है
बहुत हुनर भरे पड़े है, जहन में
ये हुनर को, आजमाने का अवसर है।
उठ चल पड़,मंजिल पुकारती है
सफलता दूर से निहारती है
कदम तो निकाल अब, भरोसा है
ये मंजिल पाने का अवसर है।
रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
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