ना कहना भी एक कला है, तार्किक ना कहने से न करे संकोच, Saying no is also an art, don't hesitate to say a logical no

ना कहना भी एक कला है, तार्किक ना कहने से न करे संकोच, Saying no is also an art, don't hesitate to say a logical no

 ना कहना भी एक कला है, तार्किक ना कहने से न करे संकोच


हर कोई चाहता है कि वह हमेशा हर किसी का चाहेता बना रहे, हर कोई उसके काम की तारीफ करे एवं उसकी सराहना करे l इसलिए वह उसको दिए गए काम एवं जिम्मेदारी को हमेशा से पूर्ण इमानदारी एवं लगन के साथ के साथ करता है और चाहता है इसका हमेशा उसको श्रेय मिले साथ ही साथ सभी के सामने उसके काम की प्रशंसा हो l परन्तु कभी आपने सोचा है सभी को खुश रखने के चक्कर में आप पर हमेशा जिम्मेदारियाँ बढ़ा दी जाती है, आप कोई भी काम को सहर्ष स्वीकार कर लेते है इसलिए आपको ही काम के लिए हमेशा चुना जाता है l आप हमेशा काम वगैर कोई न-नुकर करे स्वीकार कर करने लगते है, आपको और अन्य काम की जिम्मेदारी सौप दी जाती है, पहले से आपके पास काम की एक लम्बी लिस्ट है,आपको और अतिरिक्त काम का बोझ डाल दिया जाता है l यदि आप किसी के अधिनस्त कार्य करते है और आपके बॉस ने आपको कोई अतिरिक्त कार्य दे दिया तो आपको ना कहते नहीं बनताl आप मन में सोच रहे होते है कि बॉस को ना कहना यानि अपनी नौकरी खतरा मोल लेना या बॉस के कोप का शिकार होना l बस आपके पास हाँ कहने के आलावा और कोई विकल्प नहीं रहता है l किसी भी काम के लिए हमेशा हाँ कहना यानि अपने आप को और अधिक समय के लिए काम से जोड़ लेना है l अतिरिक्त काम करना गलत नहीं है परन्तु यदि हमें पता है कि इससे हमें कोई विशेष फायदा नहीं होने वाला है, इससे केवल समय, शक्ति और उत्साह का हनन ही होना है तब भी काम करते रहना यह स्वयं को थकाने जैसा कार्य होता है l इससे काम करने वाला व्यक्ति अपने निजी पलो को भी प्रोपेस्नल कामो में लगा देता है और पर्सनल जीवन को अपने जॉब या नौकरी में लगा कर अपने स्वयं के सुखद पलो को खोते रहता है l हमें रोज़मर्रा के जीवन में निरंतर दूसरों के अनुरोध का सामना करना पड़ता है। दूसरों की मदद करना भले ही अच्छी आदत कहलाती है लेकिन लगातार ऐसा करते रहने से हम पाते है कि अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए हमारे पास समय नहीं रह जाता है। इस तरह के कार्य करते रहने से हमारे भीतर हताशा पैदा होने लगती है। 'न' एक सरल शब्द है जो महज एक अक्षर का है लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए 'न' उच्चारण कर पाना कठिन होता है। जबकि हम सभी जानते है कि 'न' कह देने से हम जीवन की अनेक कठिनाइयों से बच सकते हैं।

जतिन एक निजी कम्पनी में काम करता है, कम्पनी की तरफ से उसे फील्ड के दैनिक काम निर्धारित है, वह अपनी कम्पनी की तरफ से दी गई जिम्मेदारी के काम को भलीभांति पूर्ण निष्ठा के साथ करता है जिससे उसके बॉस के सामने उसकी अच्छी इमेज है l वह सब कम समय पर करता है बॉस को उस पर पूर्ण विश्वास है कि वह किसी भी काम को अच्छे से कर सकता है l कम्पनी में एक प्रोजेक्ट आता है, इस काम का पूर्व अवलोकन करने के लिए लोगो का चयन में जतिन एवं उसी के जैसे काम करने वाले लोगो का नाम आगे आता है, जतिन को इस नया काम की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी जाती है, वह भी अपने मूल काम को बिना प्रभावित किये इस नया काम को करने के लिए आदेशित कर दिया जाता है l चूँकि उसके पास फुलटाईम अपना मूल काम है, ऐसे में उसके पास अतिरिक्त समय नहीं है जिससे यह कोई अन्य काम की जिम्मेदारी ले सके परन्तु बॉस के नजरो में अच्छा दिखना एवं बॉस के कोप का भागीदार न बनने की सोच कर वह इस काम को ना नहीं कह पाता और इस काम की जिम्मेदारी ले लेता है l अब वह इस नई जिम्मेदारी के लिए दो महीनो से घर से बाहर कार्य के लोकेशन में रहकर कार्य संभाल रहा है , इसके साथ वह उसके मूल काम को भी कर रहा है l वह सुबह से शाम तक जिम्मेदारी वाले काम करता है एवं देर रात तक अपने मूल काम का उत्तरदायित्व को निभाता हुआ अपने आप को व्यस्त रखता है l कभी-कभी दिन-दिन भर ऑनलाइन मीटिंग, रिपोर्टिंग, प्रेसेंटेशन, फोर्मेट क्रिएशन, कार्यक्रम क्रियान्वयन के चलते घर में बात में करने का भी समय नहीं मिलता l एक शादी शुदा जिन्दगी पूरी तरह कम्पनी को समर्पित करने वाला जतिन आज एक ऐसे दोराहा पर खड़ा है कि इसे समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करे, जिनके लिए कमा रहा है, उनके लिए उसके पास ही नहीं है l अब वह सोचता है कि उस समय मैंने ना क्यों नहीं बोला; मैंरे पास पहले से ही काम है ऐसे में अन्य काम की जिम्मेदारी को नहीं कर पाहुंगा ऐसा मुझे ख देना चाहिए था l अब वह अवसाद से धीरे-धीरे घिरता जा रहा है l उसे उसके काम में अब वो बात नहीं लग पा रही है जैसे वह पूर्व में किया करता था l पहले जब वो काम करता था उसके काम में पूर्ण गुणवत्ता होती थी, अब उसके काम की वह पैनी नोक जैसे कम होती नजर आ रही है l परन्तु काम को बीच में छोड़कर भी नही जाया जा सकता l इस प्रकार से अपने ऊपर बोझ को लेकर अब उसे उब होने लगी है l

हमारे आसपास ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे जो अपने काम से संतुष्ट न होने से अवसाद का शिकार हो जाते है l अच्छे काम के लिए पहले जो जाने जाते थे अब उस काम में उनकी रुचि नहीं लगती है l आखिर यह सब हुआ “ना” नहीं कहने के कारण l

हर काम के लिए हमेशा “हाँ” कह देना आप पर न केवल काम का बोझ बढ़ाएगा बल्कि आपको ऐसे कार्य भी करने होंगे जिनको करना आप पसंद नहीं करते है l आपको समझना होगा कि आपका समय और बहुमूल्य उर्जा सीमित है और आपको इसकी अहमियत देनी होगी l कई बार लोग अपनी छवि खराब होने के डर से किसी भी कार्य को “न” नही कह पाते है l लेकिन आपको यह समझना होगा कि काम करने के लिए “हां” कहने के बाद समय की कमी के चलते काम ख़राब होता है तो इससे आपकी छवि अधिक ख़राब होगी l कई स्थानों पर आपके पास “ना” कहना आसन नहीं होता है l सबसे पहले तो हमें बहुत ही सभ्य तरीके से किसी कार्य के लिए मना करना चाहिए l साथ ही मना करने का उचित व तार्किक कारण भी बताया जाना जरुरी है l लेकिन इस कारण को विस्तार में बताने की आवश्यकता नहीं होती है l कई बार देखा गया है कि कुछ लोग पूरी कहानी बताएगे , जबकि सिर्फ कारण बताने भर से काम चल सकता है l किसी कार्य को मना करने के साथ आप उन्हें उस कार्य करने का विकल्प भी बता सकते है l जैसे आप कह सकते है कि आप आज व्यस्त है लेकिन आने वाले रविवार को आप खाली रहेंगे और उस दिन इस कार्य को कर सकते है l या फिर उस कार्य को करने के लिए किसी अन्य का नाम सुझा सकते है l ना कहना भी एक कलां है जिसने तर्क पूर्ण ना कहना सीख लिया यानि उसने अपने खुश रहने की कुंजी खोज लिया l  

आइये कुछ ऐसे तरीकों को जानते है जिससे आप इस परेशानी को थोड़ा कम कर सकते है -

दोस्तों के दबाव से बचे
अक्सर हम दोस्ती रिश्तेदारी, आत्मविश्वास की कमी या दुविधा के कारण दूसरों की बातें मान लेते हैं। जैसे ‘‘पार्टी में दोस्तों के कहने पर मैंने भी एक पैग ले लिया। ऑफिस के लोग बाहर खाना खाने जा रहे थे, तो मैं भी चला गया, अब बजट गड़बड़ हो गया।” इन सब परिस्थितियों में दूसरों की बात मानी, अगर चाहते तो, शालीनता से मना भी कर सकते थे। ना कहने का मतलब है अपने खुद के लिए खडे होना। कुछ बातों में ना करके आप अनचाही परिस्थितियों में फंसने से बचते हैं, इससे आत्मविश्वास बढता है l

अपनी ऊर्जा को बचाए रखें
कई बार हम दूसरों को खुश करने की लिए उनकी बात के लिए हामी भर देते है और बाद में सोचते हैं कि ना कह देते तो ज्यादा अच्छा होता। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम ना को नकारात्मक भाव से जोडते है। ऐसा करने से हम अपना समय खुद ही बर्बाद करते हैं। अपने समय,निजता और ऊर्जा को बचाने का आसान और सीधा तरीका है ना कहना।

ना कहने के तर्क पर रखें ध्यान
ना को किस जगह कैसे फिट करना है, यह आप पर निर्भर करता है। जैसे पढ़ाई करते समय फ़ोन चलाना, फेसबुक या व्हाट्सएप पर से ध्यान हटाना, भोजन को मन से खाने के लिए फोन को दूर रखना, वजन कम करना है, किसी की बातो में ना आकर अपने विवेक से कम लेना, अपना समय एवं रूचि को ध्यान में रखते हुए कार्य करना l

हाँ कहने से पहले सोचे
कभी-कभी कुछ बातें कहीं किसी और अर्थ में जाती है और सामने वाला उसे किसी और संदर्भ में ले जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमें अपनी बात को सही ढंग से समझाना नहीं आता। अगर हमारे पास सीमित समय है तो किसी को हाँ कह देने से ही उसका काम समय पर नहीं कर पाएंगे, यानी परिणाम तक पहुँचते-पहुँचते वह काम ना में ही बदल जाएगा, क्योंकि समय की कमी उसे पूरा नहीं होने देगी। ऐसे में पहले ही ना कह देना ज्यादा अच्छा होता है।

अपनी इच्छा अनुसार चलने वाले ज्यादा खुश -
दूसरे लोग हमें पसंद करें, हमारी तारीफ करें इसकी कई व्यक्तियों में इतनी ज्यादा इच्छा होती है कि अपनी इच्छाओं और जरूरतों को दरकिनार कर वे दूसरे को खुश करने में लगे रहते हैं। नतीजा वह अपने कामों को सही तरीके से नहीं कर पाते। जब सच में हमें किसी से ना कहना हो तो उस समय हाँ कहना अच्छी बात नहीं होती।

हमेशा ही 'यस' की गुडिया न बने- 
आमतौर पर महिलाओं का मानना होता है कि यदि वे दूसरों की खुशी का ध्यान नहीं रखेंगी तो वह आत्मकेंद्रित हो सकती हैं। इससे उनके आस-पास कोई सहयोगी नहीं होगा। यह सोच गलत भी हो सकती है क्योंकि अपनी कीमत पर दूसरों को खुश करने की कोशिश में जरूरी नहीं कि वे उनसे खुश हों। इस तरह हमेशा घर या कार्यस्थल पर यस की गुडिया बने रहना ठीक नहीं है।
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लेखक
श्याम कुमार कोलारे 
सामाजिक कार्यकर्त्ता, छिन्दवाड़ा (मध्यप्रदेश)
मो. 9893573770
Email: shyamkolare@gmail.com

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