गुजर रहा है वक्त अभी,
फिसल रहा है तिनका
हर शख्स बूढ़ा हो रहा ,
क्यों भ्रम पाले है मनका।
नही जवानी साथ किसी के,
अंत तक रहने वाली है
रूप रंग से इतनी प्रीति,
ज्यादा नही चलने वाली है।
जो ताक़त आज भुजा में,
कल वो चली जायेगी
ये सुंदर सा चेहरा जो है,
उसमे झुर्रियां आयेगी।
धन दौलत का जो घमंड है,
वो भी चूर हो जायेगा
अंत समय मे तन के कपडे,
साथ नही वो जायेगा।
जीवन खोया माया के संग,
पीछे उसके भागा है
मैं हूँ सबका स्वामी ऐसा,
सब पर धाक जमाया है।
खूब जोड़ी धन की पिटारी,
मकान ढेरों बनाया है
हर क्षण भागे धन के पीछे,
संपत्ति खूब जुटाया है।
एक दो से न नियत भरी,
ढेरों विलासिता अपनाया
तन को हर दम सुख देने,
खुद को बहुत भरमाया।
जानलो बात श्याम सत्य है,
नही साथ कुछ जाना है
जरूरत हमारी छोटी सी है,
दो गज में सिमट जाना है।
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रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश
मो. 9893573770
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