कविता: साथ तुन्हें देना होगा | Poem: You have to accompany

कविता: साथ तुन्हें देना होगा | Poem: You have to accompany

साथ तुम्हे देना होगा


समाज की धुरी हमारी, समाज की ये नीव कहलाये

हरपल हर घड़ी हर समय,ये हमे सही राह दिखलाये।

गिरते का हाथ थामना, स्नेह से सबको गले लगाना 

हमेशा जो सबके काम आए, ऐसा जीवन है हमारा।

बनाने मजबूत इस चैन, एक-एक कड़ी जोड़ता हुँ, 

खुशी खिलाने चेहरे की, हमेशा जुगत मे रहता हुँ।

न जाने क्यों इस बसंत में, खुशबूँ नहीं महक भरी

भीड़ होते हुए भी, बस नजर आती है आकृति मेरी।

निश्चित एक दिन फिजाओं में सर्सराहट आएगी

सबकी मंजिल जो दूर थी, जल्द ही करीब आएगी।

होगी फिजाओं में रोशनी, थोड़ा धीर रखना होगा

कदम हमारे मजबूत करने, साथ सभी को देना होगा।

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श्याम कुमार कोलारे

चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

Shyamkolare@gmail.com


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