स्कूल फिर से खुल गए हैं – कक्षा 1 में प्रवेश करने वाले बच्चों के लिए स्कूल एक नई दुनियाँ

स्कूल फिर से खुल गए हैं – कक्षा 1 में प्रवेश करने वाले बच्चों के लिए स्कूल एक नई दुनियाँ

स्कूल फिर से खुल गए हैं – कक्षा 1 में प्रवेश करने वाले बच्चों के लिए स्कूल एक नई दुनियाँ

अप्रैल की शुरुआत और स्कूल का नया सत्र प्रारम्भ होते ही बच्चों में एक नया उत्साह दिखाई देता है। पिछली कक्षा की परीक्षा के बाद कुछ अंतराल में स्कूल फिर से खुलते हैं और बच्चे नई उम्मीदों और उमंग के साथ स्कूल पहुँचना शुरू करते हैं। हर तरफ एक नई रौनक होती है – स्कूल के गलियारों में बच्चों की चहचहाहट गूंजने लगती है, नई किताबों की खुशबू और रंग-बिरंगे बैग और यूनिफॉर्म से पूरा माहौल जीवंत हो उठता है।

बच्चों के लिए यह समय खास होता है क्योंकि वे एक नई कक्षा में प्रवेश करते हैं। खासकर उन छोटे बच्चों के लिए जो पहली बार पूर्व-प्राथमिक या कक्षा 1 में स्कूल आ रहे होते हैं, यह अनुभव और भी खास होता है। उनके लिए यह एक नई और अनजानी दुनिया होती है, जहाँ वे घर की गोद से निकलकर स्कूल के अनुशासित वातावरण में कदम रखते हैं। स्कूल उनके लिए सिर्फ पढ़ाई की जगह नहीं होती, बल्कि यह वह स्थान होता है जहाँ वे पहली बार दोस्त बनाना, मिल-जुलकर रहना, नियमों का पालन करना और सामाजिकता जैसी बातें सीखते हैं। यहीं से उनके जीवन की एक नई यात्रा शुरू होती है, जो उन्हें आत्मनिर्भर और समझदार बनाती है। इस तरह अप्रैल का महीना न केवल एक नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत करता है, बल्कि बच्चों के जीवन में नए अनुभवों और विकास की दिशा भी तय करता है।

शुरुआती कक्षा बच्चों की होती बच्चों की सर्वांगीण की पहली सीढ़ी होती है। पूर्व प्राथमिक/कक्षा पहली वह आधारशिला है जिस पर बच्चे की पूरी शैक्षिक यात्रा टिकी होती है। इस स्तर पर बच्चों को अक्षर, शब्द, संख्याएँ, रंग, आकार और सामाजिक व्यवहार सिखाया जाता है। यह वह समय होता है जब बच्चे की जिज्ञासा चरम पर होती है, और यदि उन्हें सही मार्गदर्शन और समर्थन मिले, तो वे तेजी से सीखते है, इस उम्र में बच्चों को एक अनुकूलित शिक्षण, वातावरण मिलना चाहिए जिससे वह सुरक्षित महसूस करें व सीखने के लिए प्रेरित हो। भाषा विकास के माध्यम से वे अपने विचार व्यक्त करना और दूसरों को समझते हुए सीख सके। वहीं गणित की प्रारंभिक अवधारणाएँ उनकी तर्क शक्ति को बढ़ाती हैं। इस स्तर पर बच्चों में सामाजिक कौशल जैसे सहयोग, साझा करना और नियमों का पालन करना सिखाना बहुत जरूरी होता है। साथ ही, भावनात्मक विकास के अंतर्गत वे अपनी भावनाओं को पहचानना और दूसरों की भावनाओं को समझना सीखते हैं। कला, संगीत और खेल के माध्यम से उनकी रचनात्मकता को बढ़ावा मिलता है, और स्वस्थ आदतों को अपनाने की प्रक्रिया भी इसी समय शुरू होती है। इस प्रकार कक्षा 1 बच्चों के समग्र विकास की नींव रखने का महत्वपूर्ण चरण होता है।

बच्चों के लिए स्कूल एक नई दुनिया जैसा होता है। जब बच्चा पहली बार स्कूल आता है, तो वह एक नए माहौल में होता है। उसे बहुत कुछ नया देखना और समझना होता है। नई जगह, नए लोग, स्कूल में सब कुछ नया होता है- क्लासरूम, बेंच, टीचर, दोस्त, मैदान, घंटी, पानी की बोतलें और घंटियों की आवाज़। बच्चे धीरे-धीरे इस माहौल को अपनाते हैं। यहां नई बातें सीखने का मौका मिलता है। बच्चों को यहाँ पढ़ना, लिखना, बोलना, सुनना और समझना सिखाया जाता है। यह उनकी बुद्धि को विकसित करता है। दोस्ती और मिलजुलकर रहना की समझ कक्षा से ही आती है। स्कूल में बच्चा पहली बार दूसरों के साथ समय बिताना सीखता है। वह दोस्त बनाता है, चीजें शेयर करना सीखता है, और साथ खेलना भी। एक नई प्रकार की यूँ कहे तो नन्ही सी सही परन्तु कुछ जिम्मेदारी का एहसास की समझ विकसित होती ही। बच्चा अब खुद से बैग उठाता है, अपनी चीजें संभालता है, टीचर की बात मानता है और खुद पर भरोसा करना सीखता है। इसलिए शुरुआती कक्षा बच्चों को एक अलग दुनियाँ का अहसास कराती है।

इस समय बच्चों की सीखने की क्षमता बहुत ही प्रबल होती है। इस समय घर, परिवार, शिक्षक एवं पड़ोस इनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है जिनसे बच्चा शिक्षा ग्रहण करता है। शिक्षा के क्षेत्र मे कई काम हुए है एवं होते जा रहे है, परंतु वर्तमान स्थिति अभी चिंताजनक है, हालाँकि सरकार की विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं से पिछले सालों की तुलना में सुधार होता नजर आ रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू होने के बाद शिक्षा सुधार में अमूलचूल परिवर्तन दिखता है। हालांकि कोरोना माहमारी ने बच्चों के सीखने के स्तर को पीछे करने का काम किया परंतु आज बच्चों का लर्निंग गेप की रिकवरी करके आज कोविड से पहले स्थिति से बेहतर स्थिति में आने का एक अच्छा प्रयास हुआ है।    

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) 2024 के अनुसार, ग्रामीण भारत में शिक्षा की स्थिति में कुछ सुधार देखा गया है, लेकिन कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। असर 2022 के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों का स्कूल नामांकन लगभग 98.1% है। हालांकि, सरकारी स्कूलों में नामांकन 2022 में 72.9% से घटकर 2024 में 66.8% हो गया है। सरकारी स्कूलों के बच्चों की पढ़ने की स्थिति में कक्षा 3 के केवल 23.4% छात्र कक्षा 2 स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं, जो 2022 में 16.3% था। कक्षा 5 के 44.8% छात्र कक्षा 2 स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं, जो 2022 में 38.5% था। गणितीय सीखने की स्थिति में कक्षा 3 के 66% छात्र साधारण घटाव हल करने में असमर्थ हैं। कक्षा 8 के केवल 45.8% छात्र बुनियादी गणितीय समस्याएँ हल कर सकते हैं। ये सब आंकड़े बताने का प्रयास कर रहे है कि बच्चों को सीखने में शुरुआती कक्षा में ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है और यह प्रयास संयुक्त रूप से शिक्षक और माता-पिता के माध्यम किये जानें कि आवश्यकता है।

शुरुआती या पहली कक्षा में प्रवेश करने वाले बच्चों के लिए शिक्षकों और माता-पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों को खेल-खेल में सिखाएँ। बच्चों की यह उम्र ऐसी होती है जब बच्चा किसी चीज को सीखने से अधिक खेलने में ज्यादा रुचि रखता है, तो क्यों न बच्चों को खेल-खेल के माध्यम से ही पढ़ाया और सिखाया जाए। बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने की कई तकनीक एवं गतिविधियों का उल्लेख राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 , निपुण भारत अभियान के तहत उल्लेखित है जिसमे प्रत्येक बच्चे की समझ और उनकी रुचि के अनुसार पढ़ाई करवाने का प्रावधान है। शिक्षकों के साथ -साथ माता-पिता का भी दायित्व है कि वे अपने बच्चों को पढ़ाई एवं अन्य सीखने की गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करें और उनकी जिज्ञासा को बढ़ावा दें। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को नियमित रूप से स्कूल भेजें। स्कूल से लौटने पर उनके अनुभवों के बारे में पूछें। घर पर एक सकारात्मक और सहायक अध्ययन वातावरण प्रदान करें। अप्रैल माह की शुरुआती पढ़ाई के बाद ग्रीष्मकाल मे बच्चों की माह मई-जून माह में अवकाश होता है, जब बच्चा अपना अधिकतम समय घर एवं पड़ोस में बिताता है। यह समय बच्चों का एक अवशर होता है जब वह बच्चा अपने घर के सदस्यों, रिश्तेदार, पड़ोसी एवं आसपास के संसाधनों से सीखता है। इस समय बच्चाL को अपने परिवेश से सीखना का महत्वपूर्ण समय मिलता है, इस समय का सही उपयोग करने में परिवार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। ग्रीष्मकालीन अवकाश के समय बच्चों के सीखने के क्रम को सही दिखा देने में पिछले कुछ सालों में बहुत से समाजसेवी संस्था एवं सरकार आगे आयी है। पिछले वर्ष मध्यप्रदेश में "समर कैम्प", "कमाल के कैम्प" जैसे केचअप कार्यक्रम का आयोजन में अभिभावकों, माताओं एवं स्वयंसेवकों ने विशेष सहयोग  किया जिसमें बच्चों के सीखने एवं उनके बौद्धिक विकास में एक अहम भूमिका निभाईं है। 

प्रारंभिक कक्षा बच्चों के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ होता है। यह वह समय है जब उन्हें शिक्षा की दुनिया से परिचित कराया जाता है। असर 2024 रिपोर्ट दर्शाती है कि शिक्षा के क्षेत्र में कुछ सुधार हुए हैं, लेकिन अभी भी कई क्षेत्रों में काम करने की आवश्यकता है। यदि शिक्षक, माता-पिता और समाज मिलकर प्रयास करें, तो हम बच्चों के लिए एक उज्ज्वल और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। अगर हम स्कूल को बच्चों के लिए एक सुरक्षित, रोचक और सिखाने वाला वातावरण बना सकें, तो वे आगे चलकर एक मजबूत और समझदार नागरिक बन सकते हैं।

(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार है)


लेखक
श्याम कुमार कोलारे
समाजसेवी, स्वतंत्र लेखक एवं साहित्यकार
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश

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