समाज मे सरकारी नौकरी वाले लड़के बने पहली प्राथमिकता, निजी नौकरी या अन्य क्षेत्रों में काम कण्व वाले लड़के हो रहे उपेक्षा का शिकार. Government jobs boys are becoming the first priority in society, private or other fields working boy are neglected

समाज मे सरकारी नौकरी वाले लड़के बने पहली प्राथमिकता, निजी नौकरी या अन्य क्षेत्रों में काम कण्व वाले लड़के हो रहे उपेक्षा का शिकार. Government jobs boys are becoming the first priority in society, private or other fields working boy are neglected

सरकारी नौकरी की चाह: विवाह के लिए बनी पहली प्राथमिकता, निजी या अन्य कार्य करने वाले लड़के को नही मिल रही शादी के लिए लड़कियाँ

हमारे समाज में अब यह धारणा गहरी होती जा रही है कि लड़की के लिए सबसे उपयुक्त वर वही है, जो सरकारी नौकरी करता हो। हर घर में माता-पिता अपनी बेटी के लिए सरकारी कर्मचारी दूल्हा ढूंढ रहे हैं। नतीजा यह है कि सरकारी नौकरी वालों के लिए रिश्तों की लंबी कतार लग जाती है, जबकि निजी क्षेत्र में काम करने वाले, भले ही वे अच्छी कमाई कर रहे हों, उपेक्षित रह जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे सरकारी नौकरी मिलने के बाद व्यक्ति के अन्य गुणों का कोई मूल्य ही नहीं रह जाता।

इसका एक गंभीर प्रभाव यह भी है कि लड़कियों की शादी में माता-पिता को भारी दहेज देना पड़ रहा है। आम धारणा बन चुकी है कि सरकारी नौकरी वाले वर के लिए अधिक रकम देनी होगी, अन्यथा समाज उन्हें कमतर आंक सकता है। भले ही लड़के वाले प्रत्यक्ष रूप से कोई मांग न रखें, फिर भी लड़की के माता-पिता खुद इसे अपनी जिम्मेदारी मानते हैं और अधिक से अधिक दहेज देने की कोशिश करते हैं।

मेरी जानकारी में कई ऐसी लड़कियां हैं जिनकी उम्र 30 वर्ष से अधिक हो गई है। पिछले कई वर्षों से उनके लिए रिश्ते आ रहे हैं, लेकिन परिवार वाले केवल सरकारी नौकरी वाले वर की तलाश में हैं। यह सोच न केवल लड़कियों की शादी में देरी कर रही है, बल्कि निजी क्षेत्र में काम करने वाले योग्य युवकों के लिए भी कठिनाइयां खड़ी कर रही है।

आजकल समाज में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है कि विवाह के लिए सरकारी नौकरी वाले वर को प्राथमिकता दी जा रही है। इसका असर यह हो रहा है कि जिन लड़कियों के माता-पिता केवल सरकारी कर्मचारी दूल्हा तलाश रहे हैं, उनकी शादी की उम्र बढ़ती जा रही है। कई मामलों में लड़कियों की उम्र 30 वर्ष से अधिक हो रही है, लेकिन विवाह तय नहीं हो पा रहा क्योंकि मनचाहा सरकारी नौकरी वाला लड़का नहीं मिल रहा। सरकारी नौकरी की यह चाहत इतनी बढ़ गई है कि योग्य, मेहनती और आत्मनिर्भर युवक भी उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। वहीं, एक बार सरकारी नौकरी मिलते ही लड़कों की ‘मार्केट वैल्यू’ इस कदर बढ़ जाती है कि लड़की की सहमति या पसंद को भी दरकिनार कर दिया जाता है।

परिजनों का तर्क होता है कि सरकारी नौकरी स्थिरता और सुरक्षा प्रदान करती है, जो आंशिक रूप से सही भी है। लेकिन विवाह केवल आर्थिक सुरक्षा पर आधारित नहीं हो सकता। इसमें व्यक्ति की सोच, समझदारी और नैतिक मूल्यों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

सरकारी नौकरी निश्चित रूप से एक अच्छा करियर विकल्प है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि अन्य क्षेत्रों में कार्यरत लोग कम योग्य या असुरक्षित हैं। मेरे पति, जो निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं, अधिक मेहनती और खुले विचारों वाले व्यक्ति हैं, लेकिन विवाह के समय इन पहलुओं को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

हमारे समाज में अब यह धारणा गहराती जा रही है कि सरकारी नौकरी ही विवाह की गारंटी है। इससे एक विकृत मानसिकता विकसित हो रही है, जिसमें किसी व्यक्ति की पूरी काबिलियत केवल उसकी नौकरी से आंकी जाने लगी है। यह सोच न केवल विवाह संबंधों में असंतुलन पैदा कर रही है, बल्कि समाज में योग्यता और परिश्रम के वास्तविक मूल्यों को भी धुंधला कर रही है।

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