कक्षा में विविधता को अपनाएं और मनाएं | Embrace and celebrate diversity in the classroom

कक्षा में विविधता को अपनाएं और मनाएं | Embrace and celebrate diversity in the classroom


कक्षा में विविधता को अपनाएं और मनाएं 

होली के दिन अपने चारों ओर रंगों में सने हुए बच्चों और बड़ों को देखकर, लोगों को उल्लास के साथ लाने में इस महापर्व की महाशक्ति प्रत्यक्ष नज़र आ रही थी। जब एक दूसरे को रंगने का सिलसिला खत्म हुआ, तो मैं अपने सामने रखी रंगों की थाली को देखने लगा। थाली में विभिन्न रंग थे – हरा, नीला, पीला, लाल, गुलाबी और बैंगनी। रंगों की यह विभिन्नता और पारस्परिक विषमता ही थाली को खूबसूरत बना रही थी । कुछ इसी तरह की विभिन्नता हमें अक्सर कक्षाओं में दिखती है। अंतर केवल इतना है कि क्लासरूम में विभिन्नता या तो हम नज़रंदाज़ कर देते हैं या उसे समस्या के रूप में देखते हैं।

राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे के 75वे राउंड के अनुसार, भारत में प्राथमिक कक्षा में पढने वाले हर तीन बच्चों में से एक के लिए स्कूल में निर्देश का माध्यम घर में बोले जाने वाली भाषा से अलग है। भारत में कई ऐसे प्रान्त हैं जहाँ एक ही कक्षा में अनेक बोलियां बोलने वाले बच्चे बैठते हैं। हर भाषा से जुडी होती है उसके भाषकों की संस्कृति, उनका साहित्य और सोचने की प्रक्रिया। जब इस विविधता को नज़रंदाज़ किया जाता है, तो बच्चें जो अपनी कक्षा में देखते, सुनते या पढ़ते हैं उसे अपने रोज-मरह के परिपेक्ष से जोड़ नहीं पाते हैं और इस कारण कक्षा में सम्पूर्ण रूप से प्रतिभाग नहीं कर पाते हैं।

जहाँ भाषा में विभिन्नता को हम प्रायः नज़रंदाज़ करते हैं, वहीं एक दूसरे प्रकार की विविधता है जिसे हम समस्या मानते हैं। यह विविधता है बच्चों के मानसिक, बौधिक और शारीरिक क्षमताओं की, साथ साथ उनके सीखने, प्रतिभाग करने के और व्यक्त करने के तरीकों की। वैसे तो शोध पुष्टि करता है कि समावेशी शिक्षा के दोनों दिव्यान्गता और गैर दिव्यान्गता वाले बच्चों के लिए कई लाभ हैं, पर इसके बावजूद भारत में समावेशी शिक्षा का प्रचलन अभी भी नहीं बन पाया है। पिछले साल समावेशी शिक्षा की ज़मीनी स्थिति को समझने के लिए हमने कुछ अधिकारीयों से बातचीत की। अधिकारियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब वे दिव्यांग बच्चों के नामांकन के लिए स्कूलों में जाते हैं तो शिक्षक कहते हैं - हमसे हमारे ही बच्चे नहीं संभालते “आपके” बच्चे कैसे संभालेंगे। वैसे तो “हमारे बच्चे” और “आपके बच्चे” का यह वर्गीकरण दु:खद है, परन्तु शिक्षकों की परिस्थिति को समझना यहाँ आवश्यक है। समावेशी शिक्षा के लिए न ही उन्हें आवश्यक मार्गदर्शन और प्रशिक्षण दिया जाता है और न ही स्कूलों में उपयुक्त शिक्षण सामग्री होती है। 

हमारा पाठ्यक्रम भी एक “one size fits all” दृष्टिकोण लेता है, जहाँ सभी बच्चों के लिए समान गतिविधियाँ बतलाई जाती हैं, और ऐसी गतिविधियाँ दिव्यांग बच्चों के साथ कैसे करना है इसके लिए कुछ adaptations प्रस्तावित किये जाते हैं। इसके पीछे की धारणा है कि कक्षा में सभी बच्चे समान हैं और केवल दिव्यान्गता वाले बच्चे ही अलग हैं | न केवल यह मानना गलत है क्योंकि सभी बच्चों के सीखने, प्रतिभाग करने और व्यक्त करने के तरीके अलग-अलग होते हैं, पर साथ-साथ खतरनाक भी क्योंकि जब हम केवल दिव्यान्गता वाले बच्चों को एक अलग और छोटी श्रेणी के रूप में देखते हैं तो उनके प्रति अपना दायित्व कम मानते हैं और उन्हें नज़रंदाज कर देते हैं।  इसका नुक्सान केवल दिव्यान्गता वाले बच्चों के लिए ही नहीं है, बल्कि उन सभी बच्चों के लिए है जिनकी ज़रूरतों के अनुकूल क्लास की गतिविधियाँ और सामग्री नहीं होती। 

सर्वप्रथम आवश्यकता है दृष्टिकोण में बदलाव की - बच्चों को थाली में सजे हुए या इद्रधनुष के रंगों की तरह देखने की | यह एहसास अपने साथ काफ़ी उर्जा लेकर आएगा। हमें समझना होगा कि बच्चों को सीखने में क्या बाधाएं आ रहे हैं और उन्हें कैसे दूर किया जाये। universal design for learning,  शैक्षणिक दृष्टिकोण के सिद्धांत (multiple means for engagement, representation and expression) कक्षा में विविधता के अनुकूल शैक्षणिक माहोल तैयार करने में और शैक्षणिक गतिविधियाँ संचालित करने के लिए काफी उपयोगी सुझाव देते हैं। इस दृष्टिकोण को अपनाने के लिए हमें शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और समर्थन देना होगा।

दूसरी आवश्यकता है – होली के दिन की तरह ही - लोगों के साथ आने की। समुदाय में ऐसे कई लोग होंगे जो क्लास में विभिन्न भाषाओं में पढ़ाने में सहायता दे सकते हैं; साथ ही, बच्चों के सीखने के स्तरों और तरीकों के अनुसार, विभिन्न शैक्षणिक गतिविधि संचालित करने में शिक्षक की मदद कर सकते हैं। अंग्रेज़ी में एक कहावत है – it takes a village to educate a child. बच्चों की शिक्षा में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है पर यह दायित्व वह तभी निभा पाएंगे जब उन्हें अभिभावकों, समुदाय और सरकारी कर्मियों का साथ मिले।

आइये होली के पर्व पर, कक्षा में विभिन्नता को अपनाने और मनाने का संकल्प लें। ऐसा शैक्षणिक वातावरण बिलकुल संभव है - बस ज़रुरत है विश्वास, उत्साह, और थोड़े से लचीलेपन की। और लचीलापन तो होली हम में ला ही देती है।




लेखक

नीरज त्रिवेदी
प्रमुख, ऑर्गनाइजेशनल एफ्फेक्टनेस
प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन

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