केंद्र सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव किया है। सरकार ने अब कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए लागू 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' (No Detention Policy) को खत्म करने का फैसला किया है। इसका मतलब है कि जो छात्र साल के अंत में होने वाली परीक्षा में फेल होंगे, उन्हें अगली कक्षा में प्रमोट नहीं किया जाएगा। इसके बदले, उन्हें अपने प्रदर्शन सुधारने का एक और मौका मिलेगा। उन्हें री-एग्जाम का मौका मिलेगा। इस पॉलिसी को बदलने का मकसद छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना है। इस नीति का असर लाखों छात्रों और शिक्षकों पर पड़ेगा। आइए विस्तार से जानते हैं, क्या है नो डिटेंशन पॉलिसी, इसके खत्म होने का क्या होगा असर, क्या होंगे बदलाव।
छात्रों पर क्या होगा No Detention Policy रद्द होने का असर?
नो डिटेंशन पॉलिसी (No Detention Policy) रद्द होने के बादअब पांचवीं के बाद स्टूडेंट्स को अपनी पढ़ाई को लेकर गंभीर बनना होगा। अगले क्लास की पढ़ाई जारी रखने के लिए एन्युअल एग्जाम पास करना जरूरी होगा। अगर बच्चे वार्षिक परीक्षा में फेल होते हैं, तो उन्हें अपना पद्रर्शन सुधारने का एक और मौका मिलेगा। रिजल्ट डिक्लेयर होने के दो महीने के भीतर री-एग्जाम का मौका दिया जाएगा। अगर छात्र फिर भी पास नहीं कर पाते, तो उन्हें 5वीं या 8वीं में रोक दिया जाएगा। स्कूल और टीचर यह सुनिश्चित करेंगे कि छात्रों को उन विषयों को पूरा करने में पूरी मदद मिले जिनमें वह कमजोर हैं।
कितने राज्यों में पहले से खत्म है नो डिटेंशन पॉलिसी?
अब तक 18 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश नो डिटेंशन पॉलिसी (No Detention Policy) को खत्म कर चुके हैं। इनमें असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, दादरा और नगर हवेली, और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं। यह राज्य मानते हैं कि छात्रों को बिना पास किए अगले क्लास में प्रोमोट करने की वजह से छात्र पढ़ाई को गंभीरता से नहीं ले रहे थे। ऐसे में इस पॉलिसी को खत्म करना बेहद जरूरी था।
क्या है 'नो-डिटेंशन पॉलिसी'?
'नो-डिटेंशन पॉलिसी' (No Detention Policy) 2009 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत लागू की गई थी। इसका उद्देश्य छात्रों को फेल होने के डर से बचाना था। इस पॉलिसी के तहत छात्रों को कक्षा 8 तक प्रमोट किया जाता था। चाहे स्टूडेंट परीक्षा में पास हों या नहीं, उन्हें अगली कक्षा में प्रोमोट कर दिया जाता था। सरकार का मानना था कि इससे छात्रों पर मानसिक दबाव कम होगा। लेकिन इसके चलते छात्रों की पढ़ाई में गंभीरता कम हो गई। अब, इस नीति को समाप्त करके शिक्षा के स्तर को सुधारने की कोशिश की जा रही है।
अगर रीएग्जाम में भी छात्र फेल हो गए तो क्या होगा?
नई नीति के तहत, कक्षा 5 और 8 के छात्र अगर वार्षिक परीक्षा में फेल होते हैं, तो उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा। हालांकि, छात्रों को सुधार का मौका दिया जाएगा। परीक्षा में फेल होने पर दो महीने के भीतर री-एग्जाम होगा। अगर इस री-एग्जाम में छात्र पास होता है तो उसे दूसरे क्लास में प्रोमोट करने की इजाजत दी जाएगी। अगर छात्र री-एग्जाम में भी फेल होते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में रोक लिया जाएगा। एन्युअल परीक्षा में पास नहीं होने पर स्टूडेंट को एक साल तक और उसी क्लास में पढ़ाई करनी होगी।
शिक्षकों और अभिभावकों की भूमिका
नई नीति के तहत शिक्षकों और अभिभावकों दोनों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। अगर कोई छात्र फेल होता है, तो शिक्षक उसे और उसके अभिभावकों को उसकी कमजोरियों के बारे में जानकारी देंगे। साथ ही, उन्हें विशेष सलाह और सहयोग देंगे। अभिभावकों को भी अपने बच्चों को सीखाने-पढ़ाने पर ध्यान देना होगा। इससे स्टूडेंट्स को पिछड़े हुए विषयों को सीखने और अपनी खामियों को सुधारने में मदद करेगी।
नई शिक्षा नीति के तहत परीक्षा का फोकस किस पर होगा?
नई शिक्षा नीति के तहत परीक्षा का फोकस केवल रटने या याद करने पर नहीं होगा। इसका मकसद छात्रों को विषयों की पूर समझ देना और विकास को प्राथमिकता देना है। छात्रों से उनके विषयों की गहरी समझ और उनके व्यावहारिक इस्तेमाल पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। परीक्षा में ऐसे सवाल शामिल होंगे, जो बच्चों की सोचने की क्षमता, प्रॉब्लम को हल करने का हुनर और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण को समझने से जुड़े होंगे।
कौन-कौन से स्कूल 'नो डिटेंशन पॉलिसी' खत्म होने से होंगे प्रभावित?
'नो-डिटेंशन पॉलिसी' (No Detention Policy) खत्म होने के फैसले का असर केंद्र सरकार की ओर से संचालित किए जाने वाले 3,000 से ज्यादा स्कूलों पर पड़ेगा। इनमें केंद्रीय विद्यालय (Kendriya Vidyalayas), सैनिक स्कूल (Sainik Schools), जवाहर नवोदय विद्यालय (JNV) और दूसरे केंद्रीय स्कूल शामिल हैं। इसके अलावा, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह आजादी दी गई है कि वह अपने यहां इस नीति को लागू करें या न करें। कई राज्यों ने पहले ही इसे खत्म कर दिया है, तो वहीं तमिलनाडु ने कहा है कि वह पुराने शिक्षा मॉडल ही लागू रखेगा।
2019 में बदलाव के बाद अब लागू क्यों किया गया?
'नो-डिटेंशन पॉलिसी' (No Detention Policy) को खत्म करने का संशोधन 2019 में ही तैयार हो गया था। 2019 में संशोधन के छह महीने बाद नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की घोषणा कर दी गई। इस पॉलिसी में शिक्षा को लेकर कई बदलाव किए गए थे। इसके चलते इस नो डिटेंशन पॉलिसी को लागू करने में देरी हुई। इसके साथ ही कई राज्यों को इस नीति को अपनाने और लागू करने में समय लगा। इसके लिए राज्यों को शिक्षकों की ट्रेनिंग, संसाधनों की तैयारी और परीक्षा प्रणाली में बदलाव करने की जरूरत थी।2020 में आई कोविड-19 महामारी की वजह से भी इसे लागू करने में देरी हुई।
बदलाव का मकसद?
'नो-डिटेंशन पॉलिसी' को खत्म करने का मकसद छात्रों को रटने के बजाय समझने पर जोर देना है। वार्षिक परीक्षा और री-एग्जाम का मकसद छात्रों की समग्र शिक्षा को बेहतर बनाना है। सरकार चाहती है कि छात्र केवल प्रमोट होने के लिए न पढ़ें, बल्कि सीखने पर ध्यान दें। यह बदलाव शिक्षा प्रणाली को सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
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