सिहर जाता हूँ देख उन बच्चों को
जिसके हाथों से किताब छिन जाती है
दोजून खाने के खातिर माँ,
दिन भर अपनी जान जलती है।
रुधिर बहते जब आँखों से
जब बच्चा कोई घर से कमाने जाता है
जो हाथ में पुस्तक होनी थी
वो कारखाने ने औजार उठाता है।
मजबूर बच्चा अपने पेट की आग बुझाने
दूसरों के आगे अपना हाथ फैलाता है।
मिले माँ की ममता इन बच्चों को
कोई माता की कोमल थपकी दे जाए।
पिता का प्यार इन बच्चों को,
इन्हें भी आशीर्वाद मिल जाये
इन्हें भी तो हक है जीने का
इन्हें विद्यालय में शिक्षा पाने का
इन्हें भी तो हक अपना संसार बसने का।
जीवन मे गर करना अच्छा
बच्चों की मुस्कान के लिए कुछ कर जाओ।
जिसके पास नही कुछ खोने को
उसको तो कुछ तुम दे आओ।
ईश्वर ने दिया है हमको, ये हमारा कुछ भी नही
जिसकी है ये माया उसको तुम कुछ दे जायो
सरिता शीतल जल से सबकी प्यास बुझती है
पेड़ नही लेते कुछ हमसे, हरदम देते जाते है।
कुछ हम ऐसा कर ले, नाम हो जग में ऐसा
अच्छाई के नाम मे, आपका नाम हो जैसा।
श्याम कोलारे
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