आसमां को देखकर, धरती पुकारती है
उठती है आग दिल मे, ठंडक तलाशती है
ये आस भारी निगाहें, क्यो नम पड़ी हुई है
आजा! अब आरजू मेरी, ये दूरियाँ तड़पाती है।
तपिस भारी चुभन में, तर बतर हुआ तन है
कांटें सी चुभती दूरी, किया बहुत जतन है
आसमान के स्वामी, न आक मुझको कमतर
एक बार करदे तू, मुझको करदे तर-बतर।
ये आँख नम हुई है, तेरे दीदार के खातिर
ये टकटकी लगी है, इंतजार में हूँ माहिर
मेघ के रखवाले, काली घटा के स्वामी
मुझको तू पूरा भरदे, अडसे से हूँ मैं खाली।
तेरी नजर से अब तो, मेरी नजर मिलाले
मत फेर आँखे मुझसे, सीने से तू लगाले
आई है बेला ऐसी, प्यासे सावन के जैसी
मत दूर रहना मुझसे, तू दूरियाँ मिटाले।
आसमां को देखकर, धरती पुकारती है
मिलने की आस में, खुद को सबारती है
तपिस भरी बैचेनी, ठंडक तलाशती है
मिलने को 'श्याम' धरती, ऊपर निहारती है ।
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रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिंदवाड़ा
9883573770
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