विश्वास, belive

विश्वास, belive


विश्वास इस कदर डोल रहा, 
खुद पर एक विश्वास बाकी है।
अनजान भीड़ में भटकता रहा अकेला
अपनों से अनकही तकरार बाकी है।
साँसे ले रहा हूँ गिन-गिनकर
जिंदगी का उधार चुकाने को
जीवन मे रस है बहुत मगर
मीठे सपनो का एहसास बाकी है। 

अपनो की भीड़ ने अकेला चला
दिले करीबी जस्बात बाकी है
उम्मीद के घन छाए बादल में
विश्वास की अब बरसात बाकी है।
जिंदा दफन किये रिस्तो को
धुँआ उड़ गया वश राख बाकी है। 
विश्वास की नीव में खड़ी दीवारें
सुंदर प्रासाद का अरमान बाकी है।

तिनका-तिनका जोड़कर बनाया घोसला
हर एक तिनके में जस्बात बाक़ी है
रंग चढ़ा था मेहनत का तस्वीरों में 
कील पर टंगी दास्तान बाकी है।
हसरते थी महफ़िले तारीफ सुनने की
उस वक्त में छुपी तहज़ीब बाकी है।
आज सुकून में उदार बाहर आ गया
अब लडखडाती सी चाल बाकी है।


रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश
9893573770

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