भोरप्रभा
आसमान की ओट लिए, यूँ झाँक रहा है भानू सा
मनमौला चमकीला, लाल सुनहरा दमकीला सा।
भोर सवेरे खग की चहक, उपवन में चहचाई है
मंद नींद के झौकों ने दी, प्यार भरी अँगड़ाई है।
चारों दिशा में फैल रहा है, दिनकर का उजयारा
चंचल किरण बिखेर रही है, जीवन सकल संसारा।
दूर भागा घोर अँधेरा, नया उजाला फिर चमक रहा
नभ से लेकर धरा तक, दिवाकर फिर से दमक रहा।
बैलों की घंटी बोल उठी, हलदर की बाँहे फिर तैयार
पक्षी नीड अब छोड़ चुके है, अपनी उड़ान को तैयार।
चुपके से आकाश प्रभा पर, भूमि पर कदम बढ़ाए
स्वा आहट से धरा में, सुनहरा प्राण संचार कराए।
सब जागे तुम भी जागो, अपनी आँखें अब खोलो तुम
जीवन अब फिर शुरू हुआ, अपने पैरों से भागो तुम।
रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश
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