चारो तरफ ये कैसी हवा चल रही है
बरसात में ये धरती सुखी लग रही है
फूलों में खुशबू अब कम होने लगी है
कुदरत को किसी की नजर लग रही है
गरीबों के जेब हमेशा से खाली है
अमीरों की तिज़ोरी रोज भर रही है
चारो तरफ ये कैसी हवा चल रही है।
शिक्षा तो सभी को मुफ़्त में मिलनी थी
ये तो बाजार में खुलेआम बिक रही है
पुस्तकों के वजन से कमर झुक रही है
जरूरी के साथ दस अतिरिक्त रख गई है
हर महीने हिसाब होता है, बस लेने का है
देने की कोई भी बात नही चल रही है
चारो तरफ ये कैसी हवा चल रही है।
जेब में डांका डालने की साजिस चल रही है
हर आदमी परेशान है एक-दूसरे से यहाँ
यहाँ जेब खाली करने होड़ लग रही है
इंसान में इंसानियत, दूर होती जा रही है
छल-कपट, धोखा की दुकान खुल रही है
उदास मन श्याम देखता, बदलाब की घड़ी
चारो तरफ ये कैसी हवा चल रही है।
रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा, म.प्र.
मो. 9893573770
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