चला जा रहा हूँ अनजान राहों में
पता नहीं मंजिल कितनी दूर है
थकना मना है बीच राहों में यहाँ
चलता रह, तू कितना मजबूर है l
मन है व्याकुल तन्हाई की तपन से
अब छाँव भी गर्म लगने लगी है
राहो के कंकड़ चुभने को व्याकुल है
पना पहने हुए भी पैर जलने लगे है।
तड़प उठा जहन यूँ बिरह में ओ साथी
अक्सर ख्वाबों में तुम आने लगे है।
अचानक खुल जाती है नींद रातों में
सपने भी अब मुझे डराने लगे है।
हर दिन एक नया सफर ये जिन्दगी
अब ये लंबे गुमनाम सफर सताने लगे है।
मायूस सा दिल अब जोर से धड़कता है
दीदार को अब अरमान मचलने लगे है।
झूठा ही सही सपनों में मिल जाओ
प्यार भरी मीठी सी छुवन दे जाओ
अब यादों में मन को तड़पाने लगे हो
शीशा में मेरा अक्स भी डराने लगे है।
रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
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