रद्दी में बिक गई यादें

रद्दी में बिक गई यादें


रद्दी के भाव बिक गई,
वो कापियाँ..
जिसमे वेरी गुड देखकर,
फूले नहीं समाते थे, 
बस एक स्टार मिल जाये
घंटों पढ़ाई में लगते थे ।

माना कि हम,
आगे की बेंच से अक्सर घबराते थे
फिर भी टीचर हमें जबरन
आगे ही बिठाते थे
रद्दी के भाव बिक वो पुस्तके
जिसमे हमने ढेरो आईएमपी
निशान लगाये थे ।

कापियाँ में हमने अपनी खुद की
मेहनत से अपनी तस्वीर बनाये थे
पढ़ाई में अब्बल रहने को
विद्या की पत्ती चिपकाये थे
पूरी रहती थी कक्षा में कापियाँ
दोस्तों में भी हमारी साख थी।

हमारी कॉपी से कॉपी करने
दोस्त अक्सर लाइन लगते थे
रद्दी में बिक गई वो यादे
जिसमे अनगिनत सपने सजाते थे 
जिसकी याद में हम तुम अक्सर
साथ में गुनगुनाते थे ।
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रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश
मो. 9893573770

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