अपनी कक्षा की दक्षता सीखे बगैर आगे की कक्षा में पहुँचना, बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ Without learning the skills of own class, reaching the next class, playing with the future of the children.

अपनी कक्षा की दक्षता सीखे बगैर आगे की कक्षा में पहुँचना, बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ Without learning the skills of own class, reaching the next class, playing with the future of the children.

अपनी कक्षा की दक्षता सीखे बगैर आगे की कक्षा में पहुँचना, बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़

रोटी कपड़ा मकान जीवन की मूलभूत आवश्यकता है जिसे पाने के लिए मनुष्य दिन-रात परिश्रम में लगा रहता है। आज के समय मे ये मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए मनुष्य अपने जीवन के हर एक क्षण का उपयोग करता है। बदलती जीवनशैली , पश्चात संस्कृति का अनुसरण और विलासिता ने हमारे जीवन को परिवर्तित कर दिया है। जीवन को सुखी एवं आनंदमय बनाने के लिए मनुष्य सारा जीवन खपा देता है । आज के समय में पैसा कमाना तो सरल है परंतु उच्च जीवन शैली हेतु कमाने के लिए संसाधन के साथ-साथ शिक्षा भी जरूरी है। हम सभी शिक्षा के प्रभाव से भलीभाँति परिचित है, शिक्षाविद भारत रत्न डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा था "शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो पीयेगा वह दहाड़ेगा"।
ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा के महत्व को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा बहुत से जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। यह समाज में सभी व्यक्तियों में समानता की भावना लाती है और देश के विकास और वृद्धि को भी बढ़ावा देती है। शिक्षा के जरिए ही भावी राष्ट्र का निर्माण होता है। सबसे पहले, शिक्षा पढ़ने और लिखने की क्षमता सिखाती है। पढ़ना -लिखना शिक्षा की पहली सीढ़ी है। अधिकांश जानकारी लिखित रूप में होती है, यदि आप में शिक्षा का अभाव है या लेखन -पठन कौशल की कमी है, तो आप समाज से दूर हैं, समाज में होने वाली गतिविधियों से दूर हैं।
निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के शुरु होते ही ऐसा लग रहा था कि सभी बच्चों की मुलभूत बुनियादी शिक्षा के लिए सरकार कायबद्ध है। परन्तु जैसे-जैसे समय बीतता गया शिक्षा के प्रति जो कसाब था वह ढीला होता नजर आने लगा। जिस अधिकार के दम पर सरकार बच्चों को एक मुश्त 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देना चाह रही थी वह किसी गुब्बारे की हवा की भांति फिस्स होता नजर आ रहा है। इन उम्र के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा में दक्षता का प्रमाण पत्र मिल तो गया है परन्तु बच्चों की प्राथमिक शिक्षा सही में मिल पायी या नही शिक्षा की वर्तमान स्थिति एक प्रश्नचिन्ह लगाती है। सर्व शिक्षा अभियान का एक बड़ा लक्ष्य था, "सब पढ़े सब बढ़े"। परंतु इन पिछले दशक में बच्चे पढ़ तो नही पाए लेकिन आगे की कक्षा में बढ़ जरूर गए है।शिक्षा सुधार को लेकर देश मे अनेक संस्थाये अपने स्तर पर कार्य मे लगी है। सभी का उद्देश्य देश मे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। देश ने राष्ट्रीय स्तर और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था प्रथम एडुकेशन फाउंडेशन के सहयोग से हर साल एनुअल स्टेटस ऑफ एडुकेशन (असर) रिपोर्ट जारी की जाती है।हर साल असर रिपोर्ट शिक्षा की असली तस्वीर दिखाती है। सरकार एवं नीति निर्धारण कर्ताओं के लिए एक सटीक आंकड़े प्रस्तुत करती है कि साल दरसअल शिक्षा की ऐसी स्थिति है, इस पर सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है। असर रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर, सरकारी और निजी स्कूलों में नामांकित कक्षा V के 50.5% बच्चों जो 2018 में कक्षा II स्तर का पाठ पढ़ सकते थे 2022 में गिरकर यह अनुपात 42.8% हो गया। केवल कुछ राज्यों में पिछले सालों की तुलना में डेटा में स्थिर या मामूली सुधार के संकेत दिखाई देते है उसमें बिहार, ओडिशा, मणिपुर और झारखंड आदि शामिल हैं । इसके अलावा अन्य राज्यों के बच्चों के सीखने के स्तर में कमी दिख रही है, 15 प्रतिशत या अधिक लर्निंग लॉस में आंध्र प्रदेश शामिल है (2018 में 59.7% से 2022 में 36.3%), गुजरात (53.8% से 34.2%), और हिमाचल प्रदेश (76.9% से 61.3%)। 10 से अधिक की पॉइंट प्रतिशत उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में दिखाई दे रहे हैं। मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य में 35.6 फीसदी कक्षा V के बच्चे कक्षा II स्तर का पाठ पढ़ पाते है, वही 19 फीसदी बच्चे एक साधारण घटाव का सवाल कर पाते है। बच्चों के सीखने स्तर में इतना बढ़ा गेप किस ओर इशारा कर रही हैं यह सोचने की बात है। यह चिंतन करने वाली बात है कि हर साल इतनी बड़ी संख्या में बगैर सीखे ही बच्चे आगे की कक्षा में कैसे बढ रहे, क्या ये बच्चे के भविष्य के लिए अच्छे संकेत है? क्या हम डिग्रीधारी अकुशल युवाओं को तैयार कर रहे है, जो कल के देश के भविष्य का निर्माण करेंगे। हर साल शिक्षा के लिए करोड़ो का बनता है और खप भी जाता है, परन्तु जिस काम के लिए यह करोड़ो रूपये खर्च हो रहा है उसका परिणाम क्या आ रहा है इसे गंभीरता से संज्ञान में लेने की आवश्यकता है। बच्चों की प्राथमिक शिक्षा जितनी सुद्रण होगी बच्चों के भविष्य में सफलता गैरंटी उतनी ही मजबूर होगी।
मध्यप्रदेश के कक्षा V के 65 फीसदी उन बच्चों बारे में थोड़ा सोचकर देखें जो पढ़ने की दक्षता सीखे बगैर कक्षा VI में चले गए है, अब यहाँ उनके पढ़ने का स्तर में काफी बदलाब आने वाला है, उसे हिन्दी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अंग्रेजी जैसे उच्च दक्षताओं से परिचय करवाया जायेगा। ये 65 फीसदी बच्चे को ये पुस्तकें व अवधरणाये समझ से परे होगी। बच्चों को ये मोटी पुस्तकें कैसे शिक्षित बनायेगी ये समझ से परे है। शिक्षा की ये स्थिति देश की प्रगति में अवरोध का कारण बनने के लिए पर्याप्त साक्ष्य है इस पर शिक्षा नीति निर्माताओं को गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है। इसके पीछे के कारणों को जानकर उस पर उपचारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है। नही तो कल ये बच्चे केवल कलपुर्जे नजर आएंगे, जिसमे ताकत तो होगी परन्तु दिमाग नही होगा। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार के साथ-साथ जन समुदाय एवं अभिभावकों की भूमिका बड़ी अहम हो सकती है। इस उम्र या कक्षाओं जे बच्चों के लिए रेमिडिअल, उपचारात्मक कक्षाओं के संचालन कर सटीक बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान को सिखाया जाना आवश्यक है जिससे बच्चों की बुनियाद मजबूत की जा सके। इस वर्ष प्रथम संस्था का तीन बड़े राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं बिहार में माह मई से मध्य जून में कक्षा VI के नॉन रीडर बच्चों की बुनियादी पढ़ने की समझ एवं दैनिक संख्यात्मक कौशल को बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में समर कैम्प लर्निंग कैचअप अभियान के माध्यम से गांव -गांव ने शिक्षा का अभियान चलाया जा रहा है। उस समर कैम्प में हाई/ हायर सेकण्डरी स्कूल, डाइट, महाविद्यालय के छात्र, मध्यप्रदेश जनअभियान परिषद, नेहरू युवा केन्द्र, सिविल सोसाइटी के स्वयंसेवक, शिक्षित माताएं एवं युवाओं की मदद से गाँव-गाँव में ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई में मदद की जायेगी। ये प्रयास शायद ऊंट के मुँह में जीरा जैसे हो सकता है, परन्तु ये गहरे तालाब से एक कंकड़ डालने जैसा शिक्षा में हलचल पैदा करने के लिए काफी होगा। यह अभियान शायद शिक्षा व्यवस्था के लिए एक दिशा दिखाने का काम करे। एक बड़ा मुद्दा सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाना है। ये जिम्मेदारी अभिभावकों एवं समुदाय की होनी चाहिए कि स्कूल समय मे कोई भी बच्चा घर अथवा किसी अन्य काम मे न रहे। इस समय वह अनिवार्य रूप से स्कूल में जाएं और पढ़ाई करें। स्कूल ने पढ़ाई की मॉनिटरिंग अभिभावक समुदाय एवं जनप्रतिनिधियों को समय समय पर करना चाहिए जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पुष्टि होती रहे। सरकारें स्कूली शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए वचनबद्ध हो और हर साल समीक्षा कर यथोचित अपनी योजना तैयार कर जमीनी स्तर से क्रियान्वयन करे।
(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार है)

लेखक
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्र लेखक
छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश

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