ब्राह्मण वर्ण की जातियां:- अत्रि ऋषि ने ब्राह्मण वर्ण को उनके गुणकर्म के अनुसार प्रमुख दस जातियों में बांटा है।
1. देवब्राह्मण:- जो प्रतिदिन स्नान, सन्ध्या, जपहोम, देव पूजन, अतिथि सत्कार एवं वैश्वदेव करता है। वह देव ब्राह्मण वर्ण का ब्राह्मण कहलाता है।
2. मुनि ब्राह्मण:-कन्दमूल फल पर जीवन जीता है। जंगल में निवास करता है और प्रतिदिन श्राद्ध करता है। वह मुनि ब्राह्मण वर्ण का कहलाता है।
3. द्विज ब्राह्मण:- जो वेदांत पढ़ता है, सभी प्रकार के अनुरागों एवं आशक्तियों को त्याग चुका है, सांख्य और योग में निमग्न रहता है। वह द्विज ब्राह्मण वर्ण का कहलाता है।
4. क्षत्र ब्राह्मणः-जो युद्ध करता है। लडाई झगडे की प्रवृति के गुणो वाला होता है वह क्षत्र ब्राह्मण वर्ण का कहलाता है।
5. वैश्य ब्राह्मण:- जो पशुपालन, कृषिकार्य और व्यापार करता है। वह वैश्यब्राह्मण वर्ण का कहलाता है।
6. शूद्र ब्राह्मण:-जो लाख, कुसुम के समान रंग, नमक, दूध, घी, मधु, मांस बेचता है। वह शूद्र ब्राह्मण वर्ण का कहलाता है।
7. निषाद ब्राह्मण:-जो चोर एवं डाकू हो, चुगली करने वाला, मछली और मांस खाने वाला हो।
वह निषादब्राह्मण वर्ग का कहलाता है।
8- पशु ब्राह्मण:- जो ब्रह्म के विषय में कुछ भी नही जानता हो और केवल यज्ञोपवीत और जनेऊ धारण करने का अहंकार करता हो, वह पशुब्राह्मण वर्ग का कहलाता है।
9. म्लेच्छ ब्राह्मणः-जो किसी अनुशय के कुआं, तालाबों, बाटिकाओं पर अवरोध खड़ा करे या नाश करे। वह म्लेच्छब्राह्मण वर्ग का कहलाता है।
10. चाण्डाल ब्राह्मण:-जो मूर्ख है. निर्दिष्ट क्रिया संस्कारों के शून्य एवं सभी प्रकार के धर्म आचरणों से अछूता एवं क्रूर है। वह चाण्डाल ब्राह्मण वर्ग का कहलाता है।
(अपरार्कदेवल) वैखानसगृह्य सूत्र(1/1) के अनुसार - ब्राह्मणों को आठ उपवर्ग में विभाजित किया गया है।
जाति ब्राह्मणः- जो केवल ब्राह्मणकुल में पैदा हुआ हो। जिसने वेद का कोई अंश न पढ़ा हो, ना ही ब्राह्मणोंचित कोई कर्म करता हो। उसे जाति ब्राह्मण कहते है।
ब्राह्मण:- जिसने वेद का कोई अंश पढ़ लिया हो। उसे ब्राह्मण कहते है।
3.श्रोत्रिय:- जिसने दर्शन के अंगो के साथ कोई एक
वैदिकशाखा का अध्ययन कर लिया हो। और ब्राह्मणों के है कर्मों को करता हो, उसे श्रोत्रिय ब्राह्मण कहते है ।
4-अनूचानः- जिसे वेद और वेदांगों का अर्थ ज्ञात हो, जो पवित्र हृदय का हो एवं अग्निहोत्र करता हो। अनूचान कहते है।
5-भ्रूण ब्राह्मण:- वेद और वेदांगों का अर्थ ज्ञात हो, जो पवित्र हृदय का हो. एवं अग्निहोत्र करता हो। यज्ञ करता हो, यज्ञ में बचें प्रसाद को खाता हो। भ्रूण ब्राह्मण कहते है।
6-ऋषि कल्प-जिसे लौकिक और वैदिक ज्ञान हो गया हो और जिसका मन अंदर ही सीमित हो गया हो वह ऋषि कल्प ब्राह्मण कहलाता है।
7-ऋषि ब्राह्मण:- जो अविविहित हो, पवित्र जीवन बिताता हो, सत्यवादी और वरदान देने की क्षमति रखता हो। उसे ऋषि ब्राह्मण कहते है।
8-मुनि- जिसके सामने सोना और मिट्टी सब बराबर हो जो नवीन निवृत हो उसे मुनि कहते हैं।
अंगुतर निकाय भाग -2 ब्राह्मण वग्ग में पांच प्रकार की जातियों का उल्लेख है।
1- ब्रह्म
2-देव
3. मर्यादायुक्त
4 मर्यादा रहित
5. चण्डाल ।
स्कंद पुराण में जातियां:-
ब्राह्मण वर्ग की अन्य जातियां एवं उपजातियां :- भारत में ब्राह्मण वर्ग अनेक उपजातियां एवं जातियों में विभाजित है। यथा-
दविडाश्च तैलंगा: कर्नाटा मध्यदेशगाः ।
गुर्जराश्चैव पंचैते कथ्यन्ते द्राविड़ा द्विजाः ।। सारस्वता: कान्यकुब्जा उत्कला मैथिलाश्च ये । गौडाश्व पंचधा चैव दशविप्रा प्रकीर्तिताः ।। सह्यादि खण्ड (स्कन्द पुराण)
ब्राह्मण दस श्रेणी में विभाजित है। जिनमे पांच गौड़ और पांच द्रविड है। इनमें दश ब्राह्मण कतिपय श्रेणियों में और जाति एवं उपजातियों में विभाजित है। द्रविड़ ब्राह्मणों में महाराष्ट्र ब्राह्मण चितपावन (कोकणस्थ). कहांड, देशस्थ, देवरुखे आदि कई जातियों में बंटे है। गुजरात में ब्राह्मणों की 84 जातियां है पुनः एक ही जाति में अनेक उपजातियां पाई जाती है। पंजाब में सारस्वत जाति लगभग 470 उपजातियों में विभाजित है। इसी प्रकार कान्यकुब्जजाति में सैकड़ों श्रेणियां है म्लेक्ष देश के ब्राह्मणों को अन्य देश के ब्राह्मण वर्ग हीन दृष्टि से देखते थे। त्रिशंकु बर्बर और याने उडिसा, अन्ध्र, टक्क, द्रविड़ कोंकणस्थ आदि जाति के ब्राह्मणों को श्राद्ध में नही आमंत्रित करना चाहिए। क्योंकि वे हीन जाति के ब्राह्मण है। (मत्स्यपुराण 16/16). एवं (धर्मशास्त्र का इतिहास डॉ पा.वा. काणे)
ब्राह्मणों में अंधविश्वास अधिक होता था।आज भी अंधविश्वास मे सर मीन की नाई आचरण कर रहे है। आपसी ऊंचनीच के व्यवहार होने से वे घमंडी वृति के होते थे।आज भी अपने आप को ब्राह्मण वर्ण के कहने वाले अधिकांश लोग पूर्वापेक्षा अधिक घमंडी, ईर्षालु,ऊंचनीच की भावना वाले छली कपटी होते हो। कुछ वास्तव मे ब्राह्मणी गुण वाले होते है ।
ब्राह्मणों वर्ण में अनेक जाति विभाजन होने से वे संगठित नही हुए थे। तथापि प्राचीन शास्त्रीय कवच से समाज में अपने आप को अधिक सुरक्षित अनुभव करते थे। स्वतंत्रता के बाद बोधिसत्व आम्बेडकर ने स्वतंत्र हुए भारत देश के विकास के अवरोधक ब्राह्मणी रीतिरिवाजों को अनुकूल नही पाया अतः उनके द्वारा पोषित अनेक धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन किया। कुरीतियों और अंधविश्वासों का विरोध किया. मनुस्मृति का दहन किया. डाॅ बी आर आंबेडकर ने अंधविश्वास फैलाने का विरोध किया । तो ब्राह्मणो की अनेक जाति के लोग जागे, ब्राह्मण वर्ण होने के वावजूद उनमे आपसी ऊंचनीच की प्रबल भावनाऐ थी,रोटी बेटी के रिश्ते नही होतै थे। वे असंगठित थे।बाबा साहेब के आन्दोलन ने ब्राह्मण समाज को दिशा दी।उनमें संगठन की भावना जागी और आज वे संगठित होने लगे है। सरयूपारीय सारस्वत, नार्मदीय, देशस्थ आदि हजारों जातियों में विभाजित ब्राह्मण वर्ण के लोग एक दूसरे से रोटी-बेटी का संबन्ध भी करने लगे है। अभी-2 कुछ-2 ये लोग सुधार की ओर बढ़ रहे है।
उपनिषद् काल में सभी वर्ग के ऋषि मुनियों एवं रचनाकारों का ध्यान कब, कौन और कैसे पर केंद्रित रहा। निर्वाण प्राप्त करने के लिये उन्होंने तपस्या का मार्ग अपनाया। इन ऋषि मुनियों ने हर एक वस्तु की उत्पत्ति, स्थिति और ह्रास को गंभीरता से विचारा।किन्तुअमानवीय ऊंचनीच की विचारधारा से सिमान्य जन पीडित हुआ,अनेक समतावादी विचारधारा के लोगो ने बुद्ध की शरण ग्रहण की। स्मृतिकाल में ब्राह्मण वर्ग की अनेक जातियों के सोच में परिवर्तन आने लगे। वैदिक और उपनिषद काल में ब्राह्मण वर्ग ने समाज में उच्च स्थान पर पैठ जमा ली थी. वह स्मृति काल में इतनी गंभीर हो गई कि उसे ही पृथ्वी का सृष्टा एवं स्वयंभू वर्णानाम् ब्राह्मणां गुरुः माना जाने लगा। पठन पाठनादि शिक्षा का अधिकार अपने हाथों में कर लिया गया। प्राचीन साहित्य की रचनाये उन्ही वर्ग के द्वारा की जाने लगी। असुर और द्रविड एवं बौद्ध, जो इस जम्बूद्वीप के आदि मूलनिवासी है, उनकी सभ्यता रहन-सहन और सांस्कृतिक वैचारिक संपदा पर कुठाराघात होने लगा। उन्हें निम्नतम श्रेणी में ढकेल दिया गया।
वर्तमान मे नुन्हारिया समाज जनेऊ धारण कर विषमता वादी ब्राह्मण धर्म का पोषक प्रेरक, संरक्षक हो गया है तब ऐसी परिस्थिति मे मेहरा समाज के विद्वानो को सोचना होगा कि वे ब्राह्मण संस्कृति के अंग बनकर ब्राह्मण,क्षत्रिय जाति के अंग बने (तथापि मेहरा समाज के लिऐ यह संभव नही है)या आरक्षण का लाभ लेने के लिये ,अन्त्यज ही बने रहे या जाति विहीन ,समता प्रज्ञा,शील,करूणा और शांति मयी संस्कृति के पोषक बुद्ध के अनुयायी बने।
लेखक एवं विचारक
-रिटा, प्रोफेसर डाॅ पी आर आठनेरे( आठनेरिया)
0 टिप्पणियाँ
Thanks for reading blog and give comment.