आलेख : सरकारी स्कूलों के प्रति अभिभावकों की बढ़ती उदासीनता, सरकारी स्कूल के लिए चिंता का विषय
प्रतिस्पर्धा की दौड़ में सभी अपनी लाइन बड़ी करने में लगे हुए है l और इस दौड़ में शिक्षा की बात करें तो ये लाइन बड़ी से और बड़ी करने में सरकारी स्कूल की तुलना में निजी स्कूल कही आगे है l हर साल निजी स्कूलों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है, और सरकारी स्कूल विलुप्ति की क़तर में खड़े है l निजी स्कूल की ओर अभिभावकों का बढता झुकाव निरंतर बढता जा रहा है l निजी स्कूल का झुकाव कहा जाये तो गाँव की अपेक्षा शहरो में अधिक फल फूल रहा है, सबसे ज्यादा रूचि अधिक पढ़े-लिखे एवं रईस लोगो में देखने को मिलती है l समाज का एक ऐसा तबका भी है इनके लिए सरकारी स्कूल में बच्चा को पढ़ाना जैसे उनके लिए शर्म की बात हो, और सरकारी स्कूल में पढ़ना यानि बच्चे का भविष्य अंधकार में डालने जैसा है l सरकारी स्कूल गरीबी, आभावग्रस्त की निशानी के रूप में देखा जा रहा है l सब निजी स्कूल में पढ़कर सरकारी नौकरी की तलास में रहते है l यानि पढ़ाई के लिए निजी स्कूल और रोजगार के लिए सरकारी विभाग l बड़ी अजीव प्रवर्ती है भैया जी! निजी तो निजी है, सब निजी होना चाहिए l परन्तु नहीं! सरकारी नौकरी ही चाहिए सभी को l निजी स्कूल की बिल्डिंग को और ऊँचा करने में हम पीछे नहीं है; “बड़े एवं नामदार स्कूलों में अपने बच्चों को दाखिला करने के लिए बड़ी लाइन में खडा है हमारा समाज” l सरकारी स्कूल तो सरकार के भरोसे! सरकारी स्कूल की छत से पानी रिस रहा है तो इसकी जबाबदेही सरकार की ही रहती है, समाज को इससे क्या सरोकार? सरकार जाने, सरकार आये इसको ठीक करने ! यही मानसिकता ने सरकारी सुविधायें को और गर्त में डाल रखा है l
समाज के अच्छे नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य भी है सरकार को मदद करने का; जब कही हम समाज के अच्छे नागरिक कहलाने के योग्य होंगे l मेरे पड़ोस के एक सज्जन से बात हुई; हमने उनसे पूछा भैया बच्चे का स्कूल में दाखिला करवा लिए ? उन्होंने अपना हिसाब सुनना शुरू कर दिया: एक नामी स्कूल में दाखिला करवाया है, पचास हजार डोनेशन दिए है स्कूल को; तब जाकर हुआ है स्कूल में दाखिला l बड़ा आश्चर्य की बात है वर्तमान की युवा कार्यरत पीढ़ी में अधिकतर ने सरकारी स्कूल में पढ़ाई किये है और अधिक से अधिक मात्रा में सरकारी और निजी नौकरी में है, उनका पहली से लगाकर पढ़ाई पूरी होते तक 50 हजार का खर्चा नहीं आया होगाl और अब के बच्चे का नर्सरी में दाखिला हमारी पूरी पढ़ाई से भी बहुत ज्यादा है l अब हम इतनी रकम के बदले पढ़ाई के बात करे तो नर्सरी के बच्चे को अक्षर ज्ञान और कुछ मौखिक पोएम से ज्यादा क्या सिखाया जा सकता है! इतने में ही हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता और हम हजारो की रकम इस ख़ुशी के लिए दे देते है! वैसे बात करें तो इतनी मोटी रकम देकर निजी स्कूल में पढ़ाई करना आज की जरुरत एवं मजबूरी बनती जा रही है l इसका एक सटीक कारणों में सरकारी स्कूल की पढ़ाई के प्रति उदासीनता एवं बच्चों को ठीक से न पढ़ा पाने में विफलता है l आखिर सरकारी स्कूलों का अभिभावकों में रुची क्यों नहीं है ? यह खाई बढ़ते ही जा रही है l
सरकार को इसका कारण खोजकर सरकारी स्कूलों की छबी को सुधारने का प्रयास करना चाहिए l आखिर क्या कमी है, कहाँ क्या चूक हो रही है, इसका सही तरीके से फीडबैक लेकर उपचारात्मक कार्य करने की ओर ध्यान देने की नितांत आवश्कता है l सरकार का राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी बताया गया है कि पढ़ाई का स्तर हमारे देश में बहुत संतोषजनक नहीं है, एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर कक्षा तीसरी के 20.5 फीसदी बच्चे ही कक्षा दूसरी स्तर का पाठ पढ़ पा रहे है, वही कक्षा पाँचवी के 42.8 फीसदी बच्चे दूसरी स्तर का पाठ सकते हैl इससे ऊपर की बात करे जहाँ सरकार के द्वारा कक्षा आठ के बाद उसे प्राथमिक शिक्षा पूरा करने का प्रमाण पत्र थमा दिया जाता है इस कक्षा में केवल 73 फीसदी बच्चे को ही कक्षा दूसरी स्तर का पाठ पढ़ना आता है l 27 फीसदी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा तो क्या काला अक्षर भैस बराबर नजर आता होगा l मेरी साझ में ये नहीं आ रहा है कि ये 27 फीसदी बच्चे कक्षा आठ तक बिना पढ़े पहुंचे कैसे? यदि इनको पढ़ना नहीं आ रहा है तो लिखना एवं समझ की कल्पना करना भी कठिन है l क्या शिक्षा के नाम पर इस नौनिहालों को ठगा जा रहा है! क्या यही है शिक्षा का अधिकार कानून! बच्चों को केवल एक कक्षा से दूसरी कक्षा में ढ़केल दिया जाये; उनको पढ़ना आये या न आये l मेरी नजर में ऐसी शिक्षा का कोई मतलब नहीं है जो सर्टिफिकेट में पढ़े लिखे होने का दावा करे परन्तु वास्तव में अनपढ़ के सामान है l
आखिर सरकार के द्वारा दी जाने वाली सुविधायें अभिभावको को रास क्यों नहीं आ रही इसकी समीक्षा करना चाहिए, और समीक्षा के आधार पर उचित कदम उठाना चाहिए l स्कूल में सरकार द्वारा प्रदान सभी सुविधायें बच्चों की पढ़ाई को उत्कृष्ट बनाने के लिए की जाती है परन्तु स्कूल का ध्यान स्कूल की सुविधायें जैसे स्कूल भवन, खेल मैदान, शौचालय, पेय जल, मध्यान्ह भोजन, शाला गणवेश, पाठ्य पुस्तक, छात्रवृत्ति, साइकिल वितरण आदि सब प्रदान करने का कार्य बड़ी तल्लीनता से किया जा रहा है लेकिन ये सब जिसके लिए किया जा रहा है बस वही एक महत्वपूर्ण कार्य नहीं हो पा रहा और वह है बच्चों को उसकी कक्षावार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा l बच्चे बिना सीखे ही एक कक्षा से उच्च कक्षा में बढ़ते चले जा रहे है l यह भविष्य में एक बहुत बड़े खतरे के रूप में उभरकर सामने आने वाली समस्या है; इसको समय रहते नहीं संभाला गया तो ये आगे अपने विकराल रूप में सामने आएगी और इसका समाधान करने में बहुत देर हो जाएगी l
इन सबका कारणों को पता लगाना एवं इस पर उच्च तंत्र से लेकर जमीनी स्तर तक पूर्ण निष्ठा एवं इमानदारी के कार्य करना होगा l इसके लिए समाज के हर वर्ग को अपनी जिम्मेदारी से कार्य करने की आवश्यकता है l इसकी शुरुआत आंगनवाडी से लेकर प्राथमिक शिक्षा तक बच्चों की बुनियादी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर जोर देना होगा l बच्चों की शुरूआती बुनियाद यदि मजबूत होगी तो बच्चा आगे की कक्षा के लिए तैयार हो सकेगा l असर 2022 रिपोर्ट के अनुसार कक्षा पाँचवी के आधे से अधिक बच्चों को भाग का सवाल करने में असक्षम है l ये बच्चे प्राथमिक से माध्यमिक कक्षा में जायेंगे तो भाग से कंही ज्यादा कठिनाई स्तर की पढ़ाई से गुजरना पड़ेगा, ये बच्चे कैसे इन कक्षाओं में टिक पाएंगे ये बहुत बड़ा सोचने का विषय है l पाँचवी के ये आधे बच्चे अपनी मुख्य धरा से पिछड़ जायेंगे और अपना पूर्ण विकास नहीं कर पाएंगे l इन बच्चों के बारे में सोचने की आवश्यकता है कि इनका क्या होगा? इन बच्चों को कैसे मुख्य धारा से जोड़ने के लिए कैसे और किस स्तर पर प्रयास करना होगा l बच्चों को उनकी ग्रेड के अनुसार लर्निंग करना एक बड़ी चौनौती हो सकती है परन्तु सरकार का उचित निति निर्धारण, शिक्षकों साथ-साथ अभिभावकों का भी इसमें सहयोग हो तो सरकारी स्कूल को फिर से उत्कृष्ट बनाने में देर नहीं लगेगी l फिर से सरकारी स्कूल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की मिशल बनेगे और पुनः अभिभावकों की पहली पसंद बनेगे l
(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार है l )
लेखक : श्याम कुमार कोलारे (9893573770)
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