भगवान बुद्ध ने शराब कैसे छुडाई :-
नशीले पदार्थों का प्रयोग करने से मनुष्य का किस हद तक पतन होता है, इसका भयंकर चित्र भगवान बुद्ध के जीवन काल की एक घटना से मिलता है। बुद्ध मानव-जाति के सबसे बड़े हितैषी थे, जिन्होंने अपना सर्वस्व संसार निवासी मनुष्यों दोष दूगुणों को दूर कर मुक्ति मार्गदर्शन कराने के लिए अर्पण कर दिया था। ये ऐसी समस्त बातो का निषेध करते थे, जिनसे मनुष्य उच्च मार्ग से पतित होकर निम्न स्तर का जीवन बिताने लगता है। मादक पदार्थों के संबंध में भी उनके विचार बहुत मूल्यवान और अग्रगामी थे। बुद्ध प्रायः अपने उपदेशों में कहा करते थे कि हे- मनुष्य तुम सिंह के सामने जाते वक्त कभी भयभीत न होना क्योंकि यह तुम्हारे पराक्रम की परीक्षा है। तुम तलवार के नीचे सिर झुकाने से भयभीत होना, वह बलिदान की कसौटी है। तुम पर्वत शिखर से पाताल में कूदने से भयभीत न होना, वह तप की साधना है। तुम दहकती ज्वालाओं से कभी विचलित न होना, यह तुम्हारे खरा स्वर्ण होने की परीक्षा है, पर सुरा देवी से, मादक पदार्थों से सदेव भयभीत होना, क्योंकि वह पाप और अनाचार की जननी है।
एक बार भगवान बुद्ध को विदित हुआ कि सर्वमित्र नाम का एक राजा मद्यपान में विशेष आसक्त है और उसके साथ उसके मंत्री, राज्याधिकारी तथा प्रजाजन भी इस पाप कर्म में लिप्त होकर अपना पतन कर रहे हैं। बुद्ध को यह जानकर बहुत खेद हुआ और उन्होंने निश्चय किया कि यदि इस राजा का मध्यपान छुड़ा दिया जाए तो हजारों प्राणियों का एक महापातक से उद्धार हो जाए। इस प्रकार का विचार मन में आने से उन्होंने वल्कल और मृगछाला पहनकर मुनि का रूप धारण किया और एक सुराही में मद भरकर कंधे पर लटका ली। इस वेश में जिस समय वे राजा सर्वमित्र के दरवार में पहुंचे, उस समय राजा अपने पार्षदों सहित मद्य सेवन में लगा था। बुद्ध ने उन सब पर करुणा की एक दृष्टि डाली और गंभीर स्वर में कहने लगे-देखो, पुष्पों से आच्छादित इस सुराही में सुगंधित मधुर सुरा भरी है, तुम में से कौन इसे खरीदने को राजी है ? यह सुराही कंठहार की तरह सुसज्जित है।
तुम में से कौन इसे मूल्य देकर प्राप्त करने का अभिलाषी है ? राजा ने सुराही को देखा और बुद्ध के वचनों का ठीक आशय न समझ सकने पर कहने लगा- "आप प्रातःकालीन सूर्य की भाँति तेजस्वी दिखाई देते हैं। पूर्ण चंद्रमा की सी आपकी शोभा है और आपका दिव्य वेश मुनियों का सा है। आपको हम किस नाम से संबोधित करें ?" बुद्ध ने उत्तर दिया "थोड़ी देर बाद तुम जान जाओगे कि मैं कौन हूँ, परन्तु पहले इस सुराही को खरीदने की बात करो। मैं समझता हूँ कि तुम परलोक की व्याधियों और कष्टों से डरते. होगे।"
राजा ने हाथ जोड़कर कहा- “आपकी बातें अद्भुत हैं, मैंने आज से पहले कभी कोई ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो अपने बेचने की वस्तु के दोषों को प्रकट करता हो। इसलिए हे देव! आप स्पष्ट बतलाइए कि सुराही में क्या पदार्थ है और आप उसे बेचने का नाट्य क्यों कर रहे हैं ?"
बुद्ध उस दरबार में उपस्थित समस्त लोगों को सुनाकर गंभीर वाणी में कहने लगे "सुनो राजन्। इसमें न जल है और न इसमें मेघों की अमृत बूँदें हैं, न यह किसी पवित्र श्रोत की पवित्र धारा है, न इसमें सुगंधित पुष्पों का सार मधु है, न पारदर्शी घृत।न इसमे दूध है।जो शरद पूर्णिमा की चंद्र किरणो की मधुरिमा से युक्त होता है।
नहीं नहीं इसमें पिशाचनी सुरा है। इस के गुण सुनो। जो इसका पान करेगा उसे अपनी सुदबुध नहीं रहेगी और वह नशे मे मतवाला होकर भोजन के बदले गंदगी भी खा सकेगा। ऐसी यह सुरा है।
इस पदार्थ मे समस्त ज्ञान और विवेक नष्टकर देने की शक्ति है, जिससे मनुष्य अपनी विचारधारा परकाबू न रखकर एक वन्य पशु की तरह व्यवहार कर सकता है। तुमसे पी यसको भी सकते हो यह तुम्हारे खरीदने योग्य है। यद्यपि इसमें एक भी गुण नहीं है।"
"इसके पीने से तुम्हारी लाज भावना जाती रहेगी। तुम
नंगे भी रह सकते हो। लोगों की भीड़ तुम पर थूकेगी तब भी तुम्हें कुछ बुरा प्रतीत न होगा।
तुम पर गोबर, कंकड़, पत्थर तथा कीचड़ भी उछाले, तब भी तुम जान न सकोगे, ऐसी मद्य को बेचने में तुम्हारे पास आया हूँ।" "जो स्त्री इसका सेवन करे यह मदांध होकर अपने माता-पिता को रस्सियों से बांधकर कुबेर सदृश पति को भी ठुकराकर पतन के गड्ढे में प्रसन्नता से जा गिरेगी, ऐसी यह मंदिरा है।" " इसने अनेक सु-सम्पन्न परिवारों को नष्ट किया है। सुन्दर, स्वर्ण सदृश शरीर को चिताओं पर चढ़ाकर भस्म किया है।
राज महलों में रहने वाले सम्राटों को धूल में मिलाकर कुत्ते के समान पददलित किया है, फिर भी इसकी तृष्णा नहीं बुझती, ऐसी प्रलयकारी यह मद्य है।"
"इसे जिह्वा पर रखते ही मन मलिन हो जाता है, ग्रीवा ऐंठ जाती है। खूब हंसों, खूब नाचो, कुछ ध्यान नहीं रहता। इससे असत्य भाषण बोलने का साहस आ जाता है। व्यक्ति सत्य को असत्य और असत्य को सत्य समझने लगता है। इस मदांध करने वाली वस्तु के स्पर्श मात्र में पाप लगता है।
मद्य समस्त अपराधों की जननी है, यह उज्जवल मन का भयानक अंधकार है। इसकी तीक्ष्ण ज्वाला शीतल हृदय पर सदैव धधक-धक कर दहकती है। लोग इसके प्रभाव में आकर माता-पिता, भगिनी, भ्राता और बच्चों का नृशंसतापूर्वक वध कर सकते हैं, ऐसी है यह मदिरा।
हे प्रतापी राजा ! यह पेय तुम्हारे कंठ से नीचे उतरने योग्य है, इसे शीघ्रता से पान करो। इसका माणिक्य की भांति लाल रंग है, सुंदरियों की उंगलियों का स्पर्श पाते ही इसकी मादकता और भी तीव्र हो उठती है। इसे पीकर मनुष्य पशु से भी अधिक स्वच्छंद बन जाता है। यही मद्य है।
भगवान बुद्ध ने इस प्रकार निर्भयता पूर्वक मद्य का बखान करके चारों ओर दृष्टिपात किया। समस्त दरवार स्तब्ध था। चारों और सन्नाटा छाया था। एकाएक गर्जन का शब्द सुनाई पड़ा। राजा उठे और उन्होंने अपने मद्य पात्र को बड़े वेग से दीवार से टकराकर चूर-चूर कर डाला और फिर कहने लगे-
"हाय पिशाचिनी, मायावी मद्य तू जा. तू जा । छोड़ मुझे।" यह कहते थे भगवान बुद्ध के चरणों में गिर पड़े।
भगवान बुद्ध की यह कथा व्यसन मुक्ति में लगे हमारे कार्यकर्ता भाई-बहिनों के लिए दिशा निर्देश देने वाली है।
भांग,गांजा शराब ,मद्य पीने का आनंद पर्व आ रहा है। अत: मदनोत्सव आने के पूर्व जागरूकता बनी रहे इस उद्देश्य से व्यसनों के गुणो की व्याख्या की गई है।नशीले द्रव्यो की हानि का वर्णन कर उसका डर व्यसनियों को समझाने के लिये किया है। बुद्ध के उपदेश का बहुजन समाज को सही समय पर सचेत करने का सही अवसर जान कर प्रेषित करते है। भगवान बुद्ध द्वारा कही गई कहानी व्यसन छोड़ने के लिए सार्थक है।
लेखक: डाॅ परशुराम अठनेरिया से. नि. प्रोफेसर
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