आधुनिक जातियां
प्राचीन धर्म ग्रंथों में राजपूत रघुवंशी यदुवंशी महार, मराठा, नायक बलाई बैरवा आदि जातियो का ब्राह्मण ग्रंथो मे उल्लेख नही है। ये नई आधुनिक जातियां है।2.चंद्रवंशी
दो वर्ग चार कुल में वर्गीकृत है।
1 प्रतिहार
3. चालुक्य या काठियावार के सोलंकी ।
4. परमार या मालवा के पवार (अग्निकुल)
पेशवा और राजपूतों के शासनकाल में जातिवादी व्यवस्था और अधिक सुदृढ हुई। ब्राह्मण पेशवाओं तथा मराठा, राजपूत रघुवंशी यदुवंशी आदि जातियों ने महार जाति की उपेक्षा की, उन्हें अछूत की श्रेणी में रखकर प्रताड़ित किया गया।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि वैदिक ब्राह्मण ग्रंथों में महार / मेहरा नामक कोई जाति नहीं है। बौद्ध साहित्यों में मार वर्ग का उल्लेख मिलता है। इतिहासकारों का यह मानना है कि महार जाति, दक्षिण भारत की कबिलीयाई प्राचीनतम मार (नागकुल के) से मराठाओं में परिवर्तित हुई फिर सरदार मराठाओं से विभाजित होकर अस्तित्व में आई हैं। काल, स्थान, भाषाबोली के फेरबदल से मार वर्ग (नागवंशी कबीलें) से अनेक जातियों की उत्पत्ति हुई है। मार, नाग, महारठिक- महारक्खित आदि में विभाजित एवं परिवर्तित होते हुए मराठा कबिलो से प्रथक होकर वर्तमान में महार जाति अस्तित्व में आई है। फिर स्थान व्यवसाय टोटेम आदि के माध्यम से अनेक उपजातियो एवं गोत्रों में विभाजित हो जाती है।
नागमहाकुल :- इसके अंतर्गत आठ कुलो का उल्लेख भविष्य पुराण- ब्रम्हपर्व 32/1-39 में मिलता है।
1. वासुकि
2. तक्षक
3. कालिय.
4. मणिभद्र
5. ऐरावत्
6. घृष्टराष्ट्र
7. कर्कोटक
8. धनन्जय
नागकुल और उसका महत्व:-
नाग कोई सरिसर्प नही बल्कि मनुष्यो के विशेष वर्गों को संबोधित किया जाने वाला प्राचीन शब्द रहा है। सांपों के राजा को शब्दकोश में महार-महोगर (पुल्लिंग). महारह विशेषण लगने पर उसका अर्थ अत्यन्त मूल्यवान् हो जाता है। मार का नागकुल से घनिष्ट सम्बंध है। मार= चित्त की अकुशल वृतियों की साकार मूर्ति, लुभाने वाला, साक्षात् यमराज जैसे मन वाले लोग मार कहलाते है। प्राचीन ब्राह्मण साहित्य में सर्प (नाग) लोग गंधवों के समान ही एक जाति के माने जाते थे। ऋग्वेद 2/30/1, 2/19/3 में अहिनाग को इंद्र का दुश्मन कहा गया है। अर्थात् आर्यों के जम्बूद्वीप में प्रवेश के पूर्व नाग वर्ग के मूलनिवासी इस द्वीप में निवास करते थे। जम्बूद्वीप में बाहर से आये लोगों के राजा (मुखिया इंद्र) से ही मार (नाग)लोगो ने सामना किया था वे ही उनके (नाग मार) दुश्मन बने थे। महाभारत में बहुत से नाग कुलों का वर्णन मिलता है। जिसमें शेषनाग का नाम भी मिलता है। अर्जुन ने नागकन्या उलूपी से विवाह किया था आदि-आदि। नागजाति का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है जब नाग भगवानों के विशेष अंग बन जाते है। उनकी रक्षा के रुप में दर्जा प्राप्त कर लेते है। शंकर की जटा, गले का हार, बाजूबंद बन जाते है। विष्णु भगवान ने शेषनाग को जीत कर उसकी शेषशैया बनाई। उसी शेषनाग के कवच फण से विष्णु सुरक्षित रहे। भगवान बुद्ध की मुचलिन्द नाग रक्षा करते हुए दिखाई देते हैं। महामुनि बाहुबली महावीर के शरीर पर नाग लिपटे हुए है। नाग की प्रस्तर प्रतिमाए पवित्र बोधिवृक्ष पीपल के नीचे प्रायः मिलती है। दक्षिण भारत में कुछ नाग मंन्दिर मिलते हैं। राजा परिक्षित की हत्या नाग ने ही की थी। कृष्ण ने कालिदाह नाग को जीत कर उसे वश में किया था। समुद्र मंथन में वासुकि नाग को रस्सी के रुप में दर्शाया गया है। प्राचीन साहित्यों में ऐसे अनेक सांकेतिक मिथको से भरे कथानक देखने को मिल जाते है। इससे नागकुल का महत्व बढ़ जाता है। कहावत् के रुप में नागों की धरती.. व.. शेषनाग के फण पर पृथ्वी खड़ी है ...कहा जाता है। इन अवधारणाओं से स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में जम्बूद्वीप पर नागों का शासन था। जम्बूद्वीप के मूलनिवासी नागों के उत्तम शासक होने का प्रमाण मिलता है। साथ ही नागजाति की महानता और शक्ति प्रभुता समृद्धि श्रेष्ठता का बोध होता है। ये ही नागवंशीय लोग मार कबीले कहलाते हैं।
डाॅ आठनेरे
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