दर्द में धैर्य बहुत कम सूझे,
धीरज मधुफल होता है।
ज्ञानी-ध्यानी बुरे वक़्त में,
धीरज संयम खोता है।।
धैर्यशील अच्छे श्रोता बन,
सबके मन की बात सुनो।
उद्विग्नता ठीक नही है,
स्थिरता से बात गुनो।।
धीरज धरे रही मन शबरी,
रामजी पहुँचे देर-सबेर।
देख अगाध प्रेम राम ने,
प्रेम से खाए जूठे बेर।।
रखकर सब्र प्रतीक्षा करता,
कपि सुग्रीव धैर्य न खोता।
शिला गुफ़ा में न रख आता,
तो बाली से बैर न होता।
सहनशीलता सज्जनता गुण,
धैर्य बुद्धि का साथी होता।
आफ़त-विपत के आने पर,
धैर्यवान विरला नहिं रोता।
कष्ट-मुसीबत में अच्छों को,
धैर्य आर्त सब खोते देखा।
लगी लक्ष्मण शक्ति तभी,
खुद भगवान को रोते देखा।
मौलिक/अप्रकाशित-
अमर सिंह राय
नौगांव,मध्यप्रदेश
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