कविता - रोज बदलते चेहरे

कविता - रोज बदलते चेहरे


                               रूप बदलती दुनियाँ में, 

    क्या तेरा क्या मेरा है

        रोज बदलते चेहरों से

            भूल गया ये चेहरा मेरा है।


जो मैं समझ रहा था अपना

    वो तो मेरा था ही नही

       घूमा करता था भौरा बन मैं

          वो पुष्प था अपना ही नही।


बदल रहे ही हर पल रिश्ते

    जज्बात हो रहे अब सस्ते

       अपने आज मुख मोड़ रहे

           दूर हो रहे सब पास के रास्ते।


महक फूलों की अब बदल गई

    पता नही ये कैसी हवा चल गई।

        दिखावटी मुस्कान है सज गई

            अंदर का दुःख अंदर ही रख गई।


रिश्तों में दूरियाँ लिपट रही है

    और दूर हुए माँ के अरमान

        बाप का समर्पण फर्ज बना

            पिघल रहे आशा के आसमान।


ये कैसी दुविधा आन पड़ी है

    शब्द नही पर बाज है

        बिन कहे भी आबाज आये

            ये कैसा आगाज है।


बदल रही है दुनियाँ ऐसे

     रंग बिखराये सतरंगी रंग

         दुनियाँ के संग हम भी बदले

               हुए हम भी इस दुनियाँ के संग।

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लेखक

श्याम कुमार कोलारे

चारगांव प्रहलाद, छिंदवाड़ा (म.प्र.)

मोबाइल 9893573770

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