मेहरा समाज का इतिहास

मेहरा समाज का इतिहास

सभी मानव जिज्ञासु प्रवत्ति के होते है अपने वर्ग वंश के विकास के लिए ,हम कौन थे यह जानने की लालसा सभी में पाई जाती है।भारत में अनेक जातियों तथा वंश के लोग निवास करते है। जिसमे मेहरा जाती के लोग भारत के कई प्रदेशो में निवास कर रहे है  आज मेहरा जाती का प्राचीन इतिहास समय चक्र में दब गया या जान बुझ कर दबा दिया गया है या नष्ट कर दिया गया है 


आज हमें मेहरा जाती के इतिहास को जानना अत्यंत आवश्यक है ।मेहरा जाती का जो भी इतिहास आज मालूम है , ज्यादातर अनुमानों पर एवम आर्यों के धार्मिक ग्रंथो पर आधारित है ।अतः यह मेहरा जाती का इतिहास तर्क के आधार पर एवम पिछले लेखको एवं बुद्धि जीवियों के ग्रंथो के आधार पर निर्मित है ।जनमानस की परंपरागत भावनाओ इच्छाओ को ध्यान में रखा जाए तो मेहरा ही केवल मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र के बल्कि भारत के मूल निवासी रहे है  सामान्यतः मेहरा शब्द से ही महाराष्ट्र का नामकरण हुआ है  इस मत का समर्थन डॉ केतकर एवम राजराम शास्त्री भागवत ने कियाकुछ दशक पहले महारो की बहुत ही बदहाली एवम विपन्न परिस्थिति के कारन महाराष्ट्र नाम महारो से नहीं आया है ऐसा कुछ लोग अर्थ निकालते है ।परन्तु यह विचारधारा बिलकुल भी ठीक प्रतीत नहीं होती है  भूतकाल में मेहरा जाती सम्रद्ध जाती थी ,ऐसा मानना सही प्रतीत होता है  महारो से महाराष्ट्र का नाम आया इस तरह का मानना मोल्यव ने मराठी शब्दकोष में किया है। इसी शब्द की पुनरावर्ती जान विल्सन ने भी की है  तथा इन्ही अर्थो के आधार पर उन्होंने " गाव जहा महारावाडा "इस युक्ति को अमली जामा पहनाया है। महाराष्ट्र की लेखिका इरावती कुर्वे कहती है  "जहा तक मेहरा वहा तक महाराष्ट्र " इससे भी महारो को महाराष्ट्र का मूल निवासी समझा जा सकता है  लेकिन लेखक का मानना है मेहरा जाती के लोग केवल महाराष्ट्र में ही सिमिति नहीं है बल्कि संपूर्ण भारत वर्ष में सभी प्रान्तों में निवास करते है  

महारो को प्रत्येक प्रान्त में अलग-अलग नमो से जाना जाता है जैसे महरा,मेहरा,महेरा,जंकी,होलिया,परवारी,सिधवार,चोखा मेला ,बधोरामांगभादिगा ,कथिवास.भुयाल ,भूमिपुत्र ,कोटवार ,बुनकर ,आदि नामों से जाना जाता है 

भारत का प्राचीन इतिहास देखा जाये तो ज्ञात होता है की आर्य लोगो ने भारत में रहने वाले द्रविड़ संस्कृति के लोग नागवंशियों पर आक्रमण कर उन्हें युध्द में पराजित किया तथा उनका बड़ी संख्या में संहार किया ,ये आर्य उत्तर भारत से तथा खैबर दर्रे से झुण्ड बनाकर कबीलों में आये और भारत की प्राचीन द्रविड़ नागवंशी संस्कृति को केवल नष्ट किया बल्कि उनके इतिहास का विनाश किया  इस सब के बाद भी मेहरा विद्वानों ने अपना इतिहास खोज निकाला  मेहरा जाती का पूर्व नाम नागवंशी या नागलोक था  क्योकि ये जाती बड़ी संख्या में नाग नदी के तट पर निवास करती थी। उनके अनेक नगर थे जब आर्यों ने भारत में पंचनदी प्रदेश में प्रवेश किया तब वह शेष ,बासुकी,ध्रतराष्ट्र ,ऐरावत,अलापत्र ,तक्षक ,काकाकोटक इत्यादी नाग्कुल के नागराजा राज्य करते थे ।आर्यों द्वारा नागलोगो को युध्द में पराजित कर उनकी बस्तियों पर कब्जा कर लिया  खांडव वन जलने का मुख्य कारण यह है कि जंगलों में नाग लोग रहते थे ।वे समय पर आर्यों से युध्द करते थे  तब आर्यों ने खांडव वन को जलाकर नागलोगो को नष्ट करने का लक्ष्य बनाया इस मन का समर्थन इरावती कर्वे ने अपनी पुस्तक "युगांत" में किया है ।कृष्ण-अर्जुन ने तक्षक नाग का वध करने की कोशिश की लेकिन तक्षक मारा नहीं ही अपने निवास से भागा  तक्षक ने अपने जाती पर होने वाले जुल्म के बदले में राजा परीक्षित को मर डाला  तब परीक्षित के लड़के ने नागलोगो को समूल नष्ट करने का प्रण किया  उसने यज्ञ की शुरुआत की यज्ञ में नागलोगों को पकड़-पकड़ कर आहुति देने का कार्य संपन्न किया डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर कहते थे की आर्य लोगो के मन में नागलोगों के प्रति जो विड्येश भाव के पहले अनंत नमक नागवंशी योद्धा,कर्ण से मुलाकात करके युध्द में उनकी मदद करना चाहता था  लेकिन कर्ण ने इसलिए अस्विकार किया क्योंकि कर्ण आर्य था अनंत नाग यानि अनार्य था 

मेहरा भी नागवंशी है उनका निवास स्थान प्रमुख रूप से नागपुर था  मेहरा नागवंशी थे इसका समर्थन डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर तथा राजाराम शास्त्री के द्वारा किया गया है  महारों में नागपूजा और खुद के नाम के आगे नाग लिखना नागवंशी का धोतक है  नागवंशी लोगो के देवता महादेव थे  जो की नागवंशी होने का प्रतिक है  जब आर्य पंचनदी प्रदेश को लांग कर दक्षिण के महाराष्ट्र में आये तो उनकी पहली मुलाकात नागवंशी (मेहरा) लोगों से हुई होगी आर्यों ने नाग लोगो का विनाश किया इस तथ्य को निरुपित करते हुए डॉ बाबा साहेब आम्बेडकर कहते है कि आर्यों की विजय का कारण उनका वाहन था जो कि घोडो पर सवार होकर लड़ते जबकी नागलोग पैदल लड़ते थे इसलिए नाग लोगो को उत्तर से दक्षिण तक हर का सामना करना पड़ा फिर भी नाग लोगो ने यह लडाई बड़ी शूरता से लड़ी जो की आज भी जारी है।

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6 टिप्पणियाँ

  1. मेहरा राजपूत को महरौड राजपूत भी कहते है इस वंश मे अन्तिम शासक,राजा शिव राज सिहँ हुऐ थे जिन्होने राजा त्रिलोक चन्द की मुगलो से रक्षा की व उसकी जान बचाई थी
    बीकानेर राज्य (राजस्थान)का इतिहास पेज सख्या145पर लिखा पाया जाता है अधिक जानकारी के लिये ठा०उदय नारायण सिहँ द्वारा लिखी क्षत्रिय वंशावली व लेखक ठा०दुर्गादत सिहँ कुशन जी द्वारा हस्तलिखित पुस्तक क्षत्रियोदय (कश्यप राजपूत वंशावली भाग प्रथम देखे जाहा पर मेहरा क्षत्रियो का इतिहास मिलता है

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    1. आपकी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यबाद, आपकी जानकारी हम सब के लिए प्रेरणा श्रोत है l

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  2. After bettele of panipat 3rd war many soldiers of mahar Sena or Maharashtra Sena,scattered in all over north & East India called some places MEHR, MEHRA,MAHRA and MAHAR. according to their economical background B.R.Ambedkar classified into SC,OBC & UR.But all are blood related

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  3. मुझे मेंरे पूर्वजों के बारे में जानकारी की चाहिए

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Thanks for reading blog and give comment.