बेटी

बेटी


बुढ़ापा की लाठी बन जाना बेटी
    तुझे बढे आस से पाला है
        जन्म से लेकर बड़े होने तक
            कलेजे से तुझे लगाया है।

पढ़ लिखकर बेटी तुमको
   समाज में मान बढ़ाना है 
      माँ-पिता की आँखों का तारा
         बेटी! नाम इनका बढ़ाना है।

अब तुम बनो बुढ़ापे की लाठी
   तुम ही रखना इनकी लाज
     आस बढ़ी तुमसे है बेटी
        तुम भविष्य,तुम ही मेरा आज।

जब तुम कोख में आई थी
   अपनी किस्मत लिख लाई थी
      तुम्हारे किस्मत से ही बेटी
         माता ने ममता का सुख पाई थी।

किसी से कम नही है बेटी
   भूखे उदर की बने ये रोटी
       नाज होता है आज बेटी पर
          माँ-बाप के गम में है रोती।

समझ की बात ये माँ-पिता की
   भले जन्म न दिए उदर हो
      सास-ससुर के रूप में सही
       बेटी तुम बुढ़ापे की लाठी बनी हो।


रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा(म.प्र.) 
मो. 9893573770

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