दहेज Dowri

दहेज Dowri

 


लाखो घर बर्बाद हो गए,इस दहेज की बोली में।

अर्थी चढ़ी लाखो कन्या,बैठ न पाई डोली में।।

कई पिता ने बेटी के पीले हाथ कराने में।

कितनो की तो पगड़ी उतरी,शर्म आती बताने में।।

जिन माता पिता पर बीती,बात नही कुछ कहने की।

हजारों लाखो का कर्ज लदा है ,छमता ना रही सहने की।।

खेत गहने घर बेचते ,सिर्फ मांग की रोली में ,,,

अर्थी चढ़ी लाखो कन्या बैठ ना पाई डोली में 


रोज टूटते है ये रिश्ते ,फूट रही थी तकदीरे,

लोभी फिर भी खोज रहे थे ,नित शोषण की तस्वीरें।

नौजवान गुणवान भी कुछ बनते भिखारी थे ,।

कलेजा का खून पीते बीमारी से घिरे थे ।।

इतनी गंदी प्रथा की ,अब झोंक दो होली में ,,,,

अर्थी चढ़ी लाखो कन्या बैठ ना पाई डोली में 


दहेज के दानव से डरकर,गर्भ में ही कन्या मरवाने लगे,।

सिर्फ पुत्र के जन्म से भारी उत्सव मनाने लगे।। 

कन्या हो रही कम,बहु कहां से लाओगे ।

बेटे ही हो तो क्या ? नाती कहां से पाओगे।।

दानवता आ गई घर में अब ,मानवता की खोली में

अर्थी चढ़ी लाखो कन्या ,बैठ ना पाई डोली में 


मानव अब तो जागो गर्भपात ,मत करवाओ तुम।

कन्या के जन्म से भी खुशियां बहुत मनाओ तुम ।। 

सास ननद भी सुनो अपना मुंह मत लटकाओ तुम ।

सबरी,मीरा ,दुर्गावती की गाथा गाओ तुम।।

पापों का मत भरो खजाना ,अब तुम अपनी झोली में ,,,,

अर्थी चढ़ी लाखो कन्या बैठ ना पाई डोली में ।


लेखक - ओमप्रकाश भावरकर, छिन्दवाड़ा 

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