कविता- दहेज

कविता- दहेज

 कविता- दहेज
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घर मे खुशियाँ आई वर्षो में
माता-पिता की आखों का तारा
नन्ही बिटियाँ के कदम पड़े दर
दादा- दादी का बनी सहारा । 
नन्ही मुनिया की किलकारी
घर आँगन में रौनक लाई
बाल किलकारियां सुनकर
सारा परिवार लगा हरषाना ।
बालिका की हँसी जैसे 
सारे संकट हर लेता है।

दिनों दिन बिटिया बड़ी हुई
अब हो गई थी सयानी
दो हाथों को चार करने 
रीति बहुत पुरानी।
बाबा अपनी सारी पूँजी
खुशियाँ में है किया न्यौछार
बेटी को शिक्षित करने
धन पूरा इस्तेमाल।

सगाई में लाखों का टीका 
बेटी मन-मन अकुलाई
शादी में दहेज की मांग ने
रातो की है नींद उड़ाई।
दहेज में देना सोने की चैन
छीन लिया मा-बाबा का रैन
नीची निगाह से हाथ फैलाने
मजबूर हुए बाबुल के नैन।

बिटियाँ संग दुःखी हुआ 
नम आंखों से सारा परिवार 
दहेज के दानव खड़ा हुआ था
छीन लिया का खुशियाँ हजार।
खेत बेचकर बाबा ने 
दिया दहेज का हर सामान 
बेटी के खातिर कर दिया
अपनी पूँजी को न्यौछार।

घर मे घाम लाकर भी 
पूरा किया दहेज का अरमान
ऐसी रीत को बंद करो जो
कर्ज में डूबा दे बाबा की शान।
कर्ज की लक्ष्मी नही सुहाए
ये है घर घाम लाये।
गर घर बहु लक्ष्मी लाना
बिन दहेज के ही बेटी लाना।
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लेखक 
श्याम कुमार कोलारे

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