तुम सा नही कोई
खुशबू बहारों की गर
हर दिल मे घुल जाए
सुखी फिजाओं में भी फिर
रौनक वारिस आ जाए
माना कि शांत है चाँद
आसमाँ में यूँ चुप बैठा
फिरभी बिन कहे ये सबसे
बहुत कुछ कह जाए।।
कहीं चमकता कहीं दमकता
कहीं फैलता अपना तेज
भानू का प्रताप देखो
नित्य खेले ये अपना खेल
नित्य सबेरे लाल किरण से
शुरू करे ये अपना भेष
दिन ढले केसरिया चूनर से
सजा देता है सारा देश।।
ऐसे ही एक और रौनक है
इस धरा में मेरे संग
बिखेरे जो चाँद सी रोशनी
सूरज सा है उसमें तेज
आगे उसके हर उपमा
जैसे सब फीकी हो जाए
बिजली सी तरंग है
उमंग से जहन भर जाए ।।
आशा निराशाओं के बीच
सदा बना रहता है तान
ऊसर उपवन में भी ये
हर मौसम में पुष्प खिलाए
क्या उपमा करू प्रियवर
तुम सा नही कोई और
जिससे तुलना करू आपकी
वो हो जाये अनमोल।।
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लेखक
श्याम कुमार कोलारे
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