अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विशेष
कविता- मेरी भाषा मेरी बोली
कोस कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी
हिन्द धरा भाषा की खान, इसकी अमर कहानी।
मेरी बोली मेरी भाषा, माँ ने जैसा मुझे सिखाया
इसी बोली से ही माँ ने, सबको गले लगाया ।
चिड़ियाँ की चूं-चूं बोली, अपने भाव में कहती है
अपनी भाषा मे चींटी, अंधेरे में सब कुछ कहती है।
विषधर की फुंकार की भाषा ,उसका रोष बताती हैं
कोयल की सुरीली कुहुक, सबके मन को भाती है।
सबका नीड सबका बसेरा, अपनी खुद की बोली है
बड़ी विचित्र भाषा है इनकी , ये ममता सी होती है।
खग जाने खग की भाषा, प्रकृति की अद्भुद माया
कीट-पतंगें भी खुश रहते, अपनो का मिले साया।
जीवन के कण-कण में , भाषा का सृजन होता है
मातृभाषा का प्रेम स्नेह ,माँ की ममता सा होता है।
कुछ भाषा ऐसी अनोखी, हृदय स्पर्श कर जाती है
बालपन से बोली जो बोली, बड़ी सुखद हो जाती है।
अपनी भाषा गर कोई बोले, सहोदर जैसा लगता है
मातृभाषा अहसास अनुभूति, भाव शब्दो में कहता है।
मातृभाषा पर गर्व करें हम, ये ममतामयी सी छाँव
संरक्षण कर इसे बचायें, इससे मिलता हमको ठाव।
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लेखक
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल 9893573770
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