बसंत ऋतु के आगमन से, पुलकित हुई पुरवाई
नए चोला में सजी है देखो,सारी धरा हुई तरूआई।
गेंहूं बाली मस्ती में झूमे, सरसो करे मन्द मुस्कान
खेतों में छाया रंग बसंत का,खग सुनाए मीठी तान।
ठण्डी-ठण्डी पवन के झौके, मन्द तरुवर ले झकोरे
रंग बिरंगे पुष्प खिले है, तितली भ्रमर मस्ती में डोले।
प्रभाकर बिखेरे सुखद ऊष्मा, चाँद शीतलता फैलाये
तरुवर की बाहों का आलिंगन, लता चली लिपटाये।
बेरों की डाली है झूली, कोयल पेड़ो पर इठलायें
लटक अन्न की बाली देख, खंजरा मन मुस्काये।
बसंत ऋतु ने घोल रखा है, पीत रंग की रंगोली
खग मानो चहक उठे है, नाचे सब बन हमजोली।
प्रीत बसंत का चढ़े है मन मे, प्रेम भ्रामर गुनगुनाएं
धरा खुसी में झूम रही है, गगन मन्द-मन्द मुस्कुराएं।
स्वागत है नव बसंत का, शारदे का कर जोड़ विनती
बसंत आगमन लाये समृद्धि,खुशियों से घर भरती।
(स्वलिखित मौलिक एवं अप्रकाशित रचना)
लेखक
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल 9893573770
0 टिप्पणियाँ
Thanks for reading blog and give comment.