बचपन की दीवाली,
उमंग भरे हजार
तैयारी में लगते थे,
दिन बहुत सुमार
दीवाली के इंतजार में,
खुशी संभल न पाए
पाँच दिनों की दीवाली,
भरपूर मजा उठाएँ।
गाँव मे कच्चे घर,
सजते थे खूब श्रृंगार में
गोबर की लिपाई में भी,
चमक थी दीवार में
आँगन में मिट्टी की छपाई,
पारी में उकेरे चित्रकारी
महीनों लगते रंगरोगन में ,
ऐसी थी दीवाली।
रंगोली की हो प्रसंशा,
हर आँगन की हो बढ़ाई
महक उठता था घर द्वार,
कच्चे रंगों की पुताई
बसता हृदय गाँव मे,
दीवाली की मधुर चहल
छोटी कुटिया हो या,
ऊँची अटारी और महल।
आज भी बच्चे दीवाली,
मनाते सह हर्षोल्लास
दीवाली गाँव की मन भाये,
भूल नही हम पाये
वैसी दीवाली आज नही है,
याद बहुत है आये।
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श्याम कुमार कोलारे
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