ये सावन की बारिश, ये ठंडी फुहारे
पड़े जब बदन में, ये सिहरन उठादे
बादल गरजना, बिजली का चमकना
छम-छम बूंदें, आसमान से टपकना
करें मन मेरा, बारिश में भीग जाऊं
नन्ही-नन्ही बूंदों से, दिन भर नहाऊ
नदी का किनारा, कल-कल आवाजें
मन में मचादें, गजब के तराने ।
धरती ने पहना है हरियाली गहना
लताये झूमे पवन का मस्ती से छूना
धरा ने धरा है, अपनी यौवन उमरिया
तरु झूमे नाचे कुश लचकाये कमरिया
ये गड-गड आवाजे गरज की बौछारे
वालायें झूले झूला, गाये सावन गाने
मन में तरंग है, दिल में उमंग है
सुन्दर बना चितवन, भू में आनन्द है ।
बहारो का मौसम मस्ती है गगन में
आसमां ताकें, धरती सहमें सरम से
झूमे धरा यूँ गगन को रिझाने
सजी ऐसी मानो,प्रियतम को मनाने
महीना ये पावन सब मस्ती में झूमे
आनन्द हुए मन शांति को छू लें ।
कवी / लेखक
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिंदवाडा (म.प्र.)
मोबाइल- 9893573770
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