महान समाज सुधारक बाबा साहब अम्बेडकर

महान समाज सुधारक बाबा साहब अम्बेडकर

बाबा साहब अम्बेडकर 
डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर (1891-1956), स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री, "दलित वर्ग" के एक नेता, विद्वान, और कार्यकर्ता थे| न् 1935 में अम्बेडकर वह एक हिंदू की तरह नहीं मरने की घोषणा की| उन्होंने अपने अनुयायियों परवर्तित होने के लिए प्रोत्साहित फिर भी अपने अनुयायियों को अंततः जो भी धर्म चुनना हो इस सवाल पर खुला छोड़ दिया| लगभग दो दशकों तक धार्मिक अध्ययन, बातचीत, और विवेचना के बाद 14 अक्तूबर सन् 1956 नागपुर में अंबेडकर अपने लगभग 40000 से 60000 अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गये और आने वाले वर्षों में भी ऐसे बहुत सारे परिवर्तन होते रहे|
दलित वर्ग में पैदा हुए, भीमराव ("बाबा साहेब") अम्बेडकर ने मुंबई (Bombay) के एल्फिंस्टन कॉलेज से फिर कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयार्क और  लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स (London School of Economics) से शिक्षा ग्रहण की| स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वह और महात्मा गांधी निचली जातियों के अधिकारों को प्राप्त करने के लिए सबसे अच्छा तरीकों पर अधिक असहमत थे| गांधी भीतर से हिंदू धर्म में सुधार करके दलितों को हिंदू धर्म में ही रखना चाहते थे और दलित वर्गों के लिए विशेष अधिकार देने से बचना चाहते थे| इसके विपरीत, अम्बेडकर निचली जातियों के लिए अधिकार और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चाहते थे| संवैधानिक सुधारों पर लंदन में स्वतंत्रता से पहले गोलमेज सम्मेलनों में निचली जातियों का प्रतिनिधित्व करने के बाद, अम्बेडकर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बने और वह भारत में सन् 1950 के संविधान के प्रमुख लेखकों में से एक थे| उन्नीसवीं सदी के जाति-विरोधी आंदोलन और बीसवीं सदी के गैर ब्राह्मण आंदोलनों के साथ, अम्बेडकर ने नये भारत में दलित मुद्दों को राष्ट्र के ध्यान में लाया|
अम्बेडकर ने बेधड़क हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था की क्रूरता के खिलाफ तर्क दिया कि लोकतंत्र में धर्म एक नई सैद्धांतिक आधार स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के अनुरूप होना चाहिए (Ambedkar, “The Annihilation of Caste")| अपने भाषणों से अंबेडकर स्पष्ट रूप से कहते थे अछूत" का मतलब वह एक नए जीवन में रूपांतरण के लिए पैदा हुआ है| उन्होंने अपने अनुयायियों से मानवीय व्यवहार के लिए, अपने आप को परिवर्तित प्राप्त करने का आग्रह किया| उन्होने अपने अनुयायियों से समानता तथा स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए परिवर्तित होने के लिए कहा| अम्बेडकर ने अंततः बौद्ध धर्म के समतावादी पहलुओं और इसके नैतिक आयाम को देखते हुए परिवर्तित होने के लिए बौद्ध धर्म को चुना है|
महाराष्ट्र की महार जाति जिसमे अंबेडकर का जन्म हुआ था, नागपुर में हुए धर्म परिवर्तन में इनकी संख्या भी सबसे ज़्यादा थी| ब्राह्मण उत्पीड़न के खिलाफ महार एक बड़े, अपेक्षाकृत अच्छी तरह से संगठित समुदाय के रूप में विशेष रूप से अंबेडकर के तर्कों को स्वीकार करने के लिए संगठित थे और इन्होने अपनी महार पृष्ठभूमि को धन्यवाद भी दिया| अन्य निचली जातियों में अम्बेडकर श्रद्धेय बने रहे, लेकिन उनके नेतृत्व को गांधी से शक्तिशाली प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा जो स्वयं को  "इच्छा से अछूत (untouchable by choice)" कहते थे, इन्होने एकमुश्त विद्रोह या हिंदू धर्म की अस्वीकृति के खिलाफ तर्क दिया और धर्म में आंतरिक सुधार के लिए कहा| अम्बेडकर ने अंततः गांधी के तर्क को खारिज कर दिया; अपने जीवन के अंतिम वर्ष में बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप अगले कुछ वर्षों में अन्य राज्यों में जाति बहिष्कृत समुदायों से 3 लाख लोगों ने बुद्ध धर्म स्वीकार किया और अम्बेडकर की प्रतिमाएं पूरे भारत में स्थापित की गयी|
दलित आंदोलन  Dalit Movement
1956 के धर्म-परिवर्तन और अम्बेडकर की मृत्यु के बाद दलित आंदोलन की लोकप्रियता और राजनीतिक शक्ति में वृद्धि हुई| इस प्रकार दलित साहित्य में नवजागरण हुआ, नए सिरे से राजनीतिक सक्रियता बढ़ी और दलितों के लिए विश्वविद्यालय में प्रवेश और सेवा नियुक्तियों में पदों सहित और भी अन्य सकारात्मक कार्रवाई और नीतियों के रूप में एक संवैधानिक सहमति भी बनी| हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों में दलित अभी भी भूमिहीन या लगभग भूमिहीन कृषक थे, अम्बेडकर की दो आयामी रणनीति एक राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिनिधित्व द्वारा सकारात्मक कार्रवाई और दूसरा धर्म-परिवर्तन से व्यक्तिगत सशक्तिकरण द्वारा अंबेडकर ने भारत की जनता के एजेंडे पर दलितों की चिंताओं को रखा| सरकारी नौकरियों में दलितों के लिए आरक्षण और अन्य सकारात्मक कार्यों द्वारा, आधिकारिक तौर पर, संसद सहित सभी विधानसभाओं में दलित प्रतिनिधित्व और विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जातियों का प्रवेश सुनिश्चित हुआ| स्थानीय स्तर पर, कुछ विधायी सीटें भी अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की गयी| ऐसे आरक्षित स्थानों के लिए अनुसूचित जाति के लोग जिन्होने धर्म-परिवर्तन कर लिया था उनके लिए इन सीटों पर प्रतिबंध लगा रहा परन्तु धर्मान्तरित हुए अनुसूचित जाति के लोग अब उन पदों के लिए पात्र बना दिए गये| दलित साहित्य ने जाति व्यवस्था और दलित महिलाओं की सामाजिक स्थिति को लेकर अपनी आलोचना जारी रखी| अंबेडकर ने न केवल रूपांतरण द्वारा धार्मिक मुक्ति आंदोलन और संगठन के माध्यम से राजनीतिक मुक्ति पर बल दिया बल्कि शिक्षा के माध्यम से सामाजिक मुक्ति के महत्व पर भी ज़ोर दिया| यह दलित साहित्य आंदोलन जिसकी जड़ें मराठी भाषा से शुरू हुई अब वह भारत के अन्य भाषाओं में भी फैल चुका था, दलित आंदोलन की बढ़ती जागरूकता के प्रसार में मदद कर रहा था| अम्बेडकर की मृत्यु के बाद के दशकों तक लेखन के इस रेले ने दलितों के लिए आवाज दी और उनके अनुभव एवं नई आकांक्षाओं को दर्शाया| दलित साहित्य आंदोलन में विरोध की कटु कविताएँ और जाति की धार्मिक आधार की कुंद निंदाएँ शामिल थी|  दलित पैंथर्स जो की अमेरिका में 1970 के दशक में गठित ब्लैक पैंथर्स के माडल पर संगठित किया था, ने जाति व्यवस्था को आंदोलनों, विरोध और कई बार हिंसक टकराव और अपने दलित-साहित्य के द्वारा चुनौती दी| अम्बेडकर की अनुसूचित जाति फेडरेशन, जो बाद में भारत के बाद रिपब्लिकन पार्टी बनी भारत में प्रमुख राजनीतिक शक्ति कभी नहीं बन पायी, परंतु हाल ही में निम्न जातियों के समर्थक दल भारतीय राजनीति में प्रमुख खिलाड़ी बन गए हैं|
संक्षेप में, दलित आंदोलन दलितों की समस्याओं और जातिगत भेदभाव की समस्याओं को हल नहीं कर पाया पर इसने दलितों का सशक्तिकरण किया, उन्हें संगठित किया, उनमें जागरूकता फैलाई और आधुनिक भारत के दलितों के दृष्टिकोण से भारत में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दोनों जगह दलितों की समस्याओं से अवगत कराया|
source:  http://www.vivacepanorama.com/dr-bhimrao-ramji-ambedkar/
Shyam

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