ये मोटर सी दौड़ती जिंदगी
हर पल हर क्षण दूर ले जाती है
कहीं सपने सुहाने
कही सुखद मंजिल जाती है।
दुपहियों का चक्र चलता सतत
कदम बढ़ते मंजिल की ओर
चलने वाले चलते रहते
नही करते व्यर्थ का शोर।
टेढ़े-मेढे पथ है जीवन में
रास्ते बड़े कठिन है
हर कदम पर सीख
सबक लेना मुश्किल है।
लंबे-लंबे रास्तो को लाँघा है
इन्ही छोटे कदमों से
मंजिल को क्या पता था
जुजुन इन कदमो का।
कई बार जीत ने मुझसे
आंख मिचौली खेली है
कभी दी उम्मीद मुझे
तो कभी उम्मीदें तोड़ी है।
पतवार चलती रही
शाहिल तलासने को
उम्मीद हो सनक की
जीत के शस्त्र सँभालने को।
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रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश
9893573770
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