खुशियाँ हुई अपार थी
अप्रैल के महीने में भी
रिमझिम चली फुआर थी।
ग्रहलक्ष्मी के रूप में
साक्षात नया अवतार था
सुख समृद्धि खुशियों का
रहना खजाना पास था।
देखकर इसकी भोली सूरत
नयनों में कांति आई थी
परमात्मा की अमूल्य कृति सी
इस धरा पर आई थी।
अचानक एक हवा चली
बात-बात में खटक हुई
एक खटका खकट गया था
प्यार का धागा चटक गया था।
बात बढ़ी कुछ आगे चलकर
हम भी थोड़े अड़े हुए थे
अर्धांगनी भी कहाँ पीछे थी
रूठकर वो भी खड़ी हुई थी।
मनाने में दिन बीत रहे थे
अरमान सब अब टूट रहे थे
जब खत्म हुई तकरार
फिर से बन गई वही सरकार।
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रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश
मो. 9893573770
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