कैसे बदल दूं आदत मेरी, जो वर्षों से बनाई है
प्रेम समर्पण दया भाव से, इज्जत जो कमाई है
दर्द किसी का देख कर न, नजरे कभी चुराई है
झुका रखी है नजर मेरी, नही कोई रूसबाई है
कैसे बदल दूं आदत मेरी, जो वर्षो से बनाई है।
शांत विनम्र परोपकारी आज्ञाकारी शिष्ट बनू
स्वभाव से शान्तपन, मृदुभाषी सा सुत बनू
जय हो सबका, जीत का मैं कोई अस्र बनू
रोया है दिल मेरा भी, आंखे भी भर आई है
कैसे बदल दूं आदत मेरी, जो वर्षो से बनाई है।
संभलकर चलना सीखा, सैकड़ों ठोकर खाया हूँ
वर्षो तक चला राहों पर, कदमों को दौड़ाया हूँ
पत्तों को खूब समेटा,जो कमजोरी थे गिर पड़े
सहारा बना मैं हमेशा, थुनिया सा जोर लगाई है
कैसे बदल दूं आदत मेरी, जो वर्षो से बनाई है।
स्वरचित
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश
9893573770
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