लघु कथा - ....और दिवाली में मेरे घर भी उजाला आएगा, मैं भी दिवाली मनाऊंगा
गांव के साहूकार का पहले ही बहुत कर्ज हो चुका था और कुछ दिनों बाद दिवाली आ रही थी। मैंने खेत पर जाकर खेतों-खलियानो को देखा जो पानी से तरबतर हो रहे थे और मैं शर्म से पानी पानी हो रहा था। बच्चों को क्या मुंह दिखाऊंगा ...उनकी दिवाली कैसे मनाऊंगा.... इस बार आसमान से पानी नहीं , आफत की बाढ़ आई थी... जो सारी फसल को तबाह कर गई और खेतों में जहां तक नजर जाए पानी ही पानी नजर आ रहा था ।
मैं बहुत देर तक वहां बैठा बैठा सोचता रहा । अब मैं क्या करूं , ना चाहते हुए भी मन में बार-बार आत्महत्या के विचार आ रहे थे । फिर सोचा यह कोई समाधान नहीं है । चलो दिवाली तो रूखी सूखी मना लेंगे ....मगर समय सदा एक सा नहीं रहता , कभी तो हमारे भी दिन फिरेंगे, कभी हम भी घी का दीपक जलाएंगे ... बच्चे फुलझड़ियां चलाएंगे ...मिठाइयां बांटी जाएगी और पूरे उत्साह उमंग और जश्न के साथ में ....दिवाली का त्यौहार मनाएंगे । इसी उम्मीद के साथ आत्महत्या के विचार का मैंने गला घोट दिया और उदास मन से अपने घर पर आ गया.... मगर कई रातो तक आंखों से नींद गायब हो गई हो जैसे ...मैं लाख कोशिश करता की नींद आ जाए.... कभी तो मेरा भी सवेरा होगा... यही सोचकर हर रात सोने का प्रयास करता ...देखते ही देखते दिवाली सर पर आ गई। घर में दिवाली के नाम पर सिर्फ तेल के दीपक ही जलाना मेरे सामर्थ्य में था। बच्चे नए कपड़े और पटाखों के लिए जिद कर रहे थे । अब उन्हें में कैसे समझाऊं खाली जेब दिवाली कैसे मनाऊं।
मैं बच्चों के सामने अपने आप को बहुत छोटा महसूस कर रहा था। जब सारा शहर रोशनी में नहाया हुआ था और आसमान में सतरंगी आतिशबाजी हो रही थी। तब मैंने बच्चों को बुलाया और उन्हें लेकर मैं निकल पड़ा बच्चों को दिवाली की रौनक दिखाने ....मेरे घर में तो दिवाली नहीं है.... मगर औरों के घर में तो धूमधाम से दिवाली मनाई जा रही थी। बस उनका मन बहलाने के लिए मैं निकल पड़ा इस छोर से उस छोर तक और उन्हें चलते चलते भगवान श्री राम की कहानी सुनाने लगा। मैंने उन्हें समझाते हुए कहा 14 वर्ष के वनवास और रावण के वध के बाद जब भगवान राम अयोध्या आए तो हर घर में घी के दीपक जलाए गए और सारी अयोध्या नगरी को रोशनी से नहला दिया गया। वापस आते आते बच्चे शायद थक गए थे । थोड़ी देर बाद वह सो गए... मगर मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी... मेरे घर में ही नहीं.... मेरे मन में भी अंधियारा और रहा था।
तभी मोहल्ले में कुछ लोगों की आवाज आई ...और कुछ गाड़ियां आकर मोहल्ले में रुकी कुछ समाजसेवी जिसमे कुछ चिरपरिचित चेहरा नजर आया, गाड़ियों में कपड़ा बैंक की टीम गाड़ियों में नए कपड़े मिठाइयां और पटाखे लेकर आए थे। उनके रूप में साक्षात भगवान आए हो जैसे.... इस अंधियारी रात में उजाला करने के लिए वह भगवान के दूत बनकर आए थे। मैंने बच्चों को जगाया! बच्चे इतनी सारी मिठाईयां, पटाखे और नए कपड़े देखकर बहुत खुश हुए.... पल भर में उनके चेहरों से उदासी की चादर हट गई और नए सूरज की तरह उनके चेहरे चमकने लगे... मेरे बच्चे भी खुशी खुशी दिवाली मना रहे थे। मैं मन ही मन उन्हें ढेरों दुआएं दे रहा था । उनकी वजह से आज मेरे बच्चों कि दिवाली जो मन रही थी।
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