बस ऊँचे ही बढ़ते जाना, कभी न रुकना न ठहरना
आसमान को छू लेने की, एक आरजू पूरी करना
धरा से ऊपर उठने की, सबमे हो मजबूत बेचैनी
उपवन में तरु खड़े है, करें हुए है लक्ष्य मजबूती
कुदरत सिखाती है जीना, उन्मुक्त सजीव सजीला।
वसुंधरा की हरियाली , यहाँ सब रंग है रंगयारी
सरिता ने सिखलाया बहता है निरन्तर पानी
ऊँचे वृक्ष देते संदेश आसमान को छू जाना है
बसंत गाती है गाना, हरदम बस झूमते जाना है
कुदरत सिखाती है जीना, उन्मुक्त सजीव सजीला।
धूप सिखाती है हमे तपिश भी बहुत जरूरी है
ठंड का मौसम ने बताया शीतलता बिन ये अधूरी है
कण-कण में बसा है कुदरत का संदेश समझना है
सीखना है जानना है, अपने हृदय में इसे बसना
कुदरत सिखाती है जीना, उन्मुक्त सजीव सजीला।
श्याम वर्ण की अंधियारी जब शाम को होती है
निश्छल पँछी मस्त गगन में नीड़ का रुख लेते है
काली रजनी लेती आगोश में, शांति सब पाते है
जीवन का सुख यही श्याम वर्ण रंग बसंती नीला
कुदरत सिखाती है जीना, उन्मुक्त सजीव सजीला।
लेखक
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)
Mobile. 9893573770
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